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रघुवंश
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राजा सबको ठीक मार्ग पर चलाते थे, इसलिए सब उन्हें पिता के समान मानते थे और विपत्ति पड़ने पर वे सबकी सहायता करते थे, इसलिए वे प्रजा के पुत्र
भी थे। 53. विशापति :-[विश् + क्विप् + पतिः] राजा, प्रजा का स्वामी।
अथ प्रदोषे दोषज्ञंः संवेशाय विशांपतिम। 1/93
रात हो चली थी, वशिष्ठ जी ने राजा दिलीप को सोने की आज्ञा दी। 54. सम्राट् :-[सम्यक् राजते :-सम् + राज् + क्विप्] सर्वोपरि राजा।
अब्याहतैः स्वरैगतैः स तस्याः सम्राट् समाराधन तत्परोऽभूत्। 2/5 राजा दिलीप नंदिनी की डाँस उड़ाते थे और जिधर भी जाना चाहती थी उधर उसे जाने देते थे। ते रेखाध्वजकुलिशातपत्रचिह्न सम्राजश्चरणयुगं प्रसादलभ्यम्। 4/88 जाते समय उन राजाओं ने राजा रघु ने उन चरणों में झुककर उन्हें प्रणाम किया, जिन पर ध्वजा, वज्र और छत्र आदि की रेखाएँ बनी हुई थीं।
रात्रि 1. क्षपा :-[क्षप् + अच् + टाप्] रात।
तदन्तरे सा विरराज धेनुर्दिन क्षपामध्य गतेव संध्या। 2/20 इन दोनों के बीच में वह लाल रंग वाली नंदिनी ऐसी शोभा दे रही थी, जैसे दिन
और रात के बीच में साँझ की ललाई। 2. त्रियामा :-[त्रि + यामा] रात, रात्रि।
मेरोरुपान्तेष्विव वर्तमानमन्योन्य संसक्तमहस्त्रियामम्। 7//4 मानो दिन और रात का जोड़ा मिलकर सुमेरु पर्वत की फेरी दे रहा हो। नरपतिरति वाहयां बभूव क्वचिद समेत परिच्छ दस्त्रियामाम्। 9/70 सारी रात उन्हें (राजा को) रात को चमकने वाली बूटियों के प्रकाश के सहारे
बिना किसी सेवक के अकेले ही काटनी पड़ी। 3. नक्त :-[नञ् + क्त] रात।
आसन्नोषधयो नेतुर्नक्तमस्नेहदीपिकाः। 4/75 वे रात को चमकने वाली बूटियों के प्रकाश से चमचमा उठती थीं, इस प्रकार उन बूटियों ने बिना तेल के ही दीपक जला दिए।
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