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कालिदास पर्याय कोश
वैदेहि पश्यामलयाद्विभक्तं मत्सेतुना फेनिलमम्बुराशिम् । 13 / 2
हे सीते ! इस फेन से भरे हुए समुद्र को तो देखो, जिसे मेरे बनाए हुए पुल ने मलय पर्वत तक दो भागों में बाँट दिया है।
3. अम्भस् :- [ आप् (अम्भ्)+असुन्] जल, समुद्र ।
वृद्धौ नदीमुखेनैव प्रस्थानं लवणाम्भसः । 17/54
ज्वार के समय जब समुद्र बढ़ता है तब नदियों के मार्ग से ही बढ़ता है दूसरे मार्गों से नहीं ।
4. उदधि :- [ उन्द+कनिन् उदक् इत्यस्य उदन् आदेशः +धि: ] समुद्र । आरुढमदीनुरधीन्वितीर्णं भुजंगमानां वसतिं प्रविष्टम् । 6/77 पर्वतों पर, समुद्र के तीर, पाताल में नागों के देश में, आकाश में। उदधेरिव निम्नगाशतेष्व भवन्नास्य विमानना क्वचित् । 8/8 जैसे समुद्र सैकड़ों नदियों से एक सा ही व्यवहार करता है, वैसे ही वे किसी का बुरा नहीं चाहते थे और न किसी से बैर करते थे ।
अथ रोधसि दक्षिणोदधेः श्रितगोकर्ण निकेतमीश्वरम् । 8/33
उसी समय दक्षिणी समुद्र के किनारे पर बसे हुए शंकरजी को । उदधेरिव रत्नानि तेजांसीव विवस्वतः । 10/30
जैसे समुद्र के रत्न और सूर्य की किरणें गिनी नहीं जा सकतीं।
भयमप्रलयोद्वेलादाच रव्युनैर्ऋतोदधेः । 10/34
जिन्होंने बिना प्रलयकाल आए ही सारे संसार की मर्यादा भंग करके चारों ओर हाहाकार मचा दिया है।
अभिवृष्य मरुत्सस्यं कृष्णमेघस्तिरो दधे । 10 / 48
जैसे सूखे के दिनों में कोई बादल धान के खेत पर जल बरसाकर निकल जाय । निवातस्तिमितां वेलां चन्द्रोदय इवोदधेः । 12/36
जैसे वायु के रुके रहने से शान्त समुद्र का तट चन्द्रमा के निकलने पर हिलोरें लेने लगता है।
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निविष्टमुदधेः कूले तं प्रपेदे विभीषणः । 12/68
जब राम समुद्र के तट पर पहुँचे, तो रावण का भाई विभीषण उनसे मिलने
आया ।
उदधेरिव जीमूताः प्रापुर्दातृत्वमर्थिन; । 17/72