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कालिदास पर्याय कोश राजा रामचन्द्रजी ने केवल पृथिवी का ही भोग किया। 32. प्रजानाथ :-[प्र + जन् + ड + टाप् + नाथः] राजा, प्रभु, राजकुमार।
जीवन्पुनः शश्वदप्लवेभ्यः प्रजाः प्रजानाथ पितेव पासि। 2/48 पर यदि जीते रहोगे तो पिता के समान तुम अपनी प्रजा के स्वामी राजा अपनी पूरी प्रजा की रक्षा कर सकोगे। ते प्रजानां प्रजानाथास्तेजसा प्रश्रयेण च। 10/83 उन प्रजा के स्वामी राजकुमारों ने अपने तेज और नम्र व्यवहार से अपनी प्रजा
का मन उसी प्रकार हर लिया जैसे। 33. प्रजापति :-[प्र + जन् + ड + टाप् + पतिः] राजा।
प्रजापत्योपनीतं तदनं प्रत्यगृहीनृपः। 10/52
वैसे ही राजा दशरथ ने भी उस दिव्य पुरुष के हाथ से वह खीर ले ली। 34. प्रजेश :-[प्र + जन् + ड + टाप् + ईशः] राजा।
प्रजाश्चिरं सुप्रजसि प्रजेशे ननन्दुरानन्दजलाविलाक्ष्यः। 18/29 राजा ब्रह्मिष्ठ के सुन्दर शासन को देखकर प्रजा को आनन्द के आँसू आ जाते थे,
उनके शासन में प्रजा बहुत दिनों तक सुख भोगती रही। 35. प्रजेश्वर :-[प्र + जन् + ड + टाप् + ईश्वरः] राजा।
तमभ्यनन्दत्प्रथमं प्रबोधितः प्रजेश्वरः शासनाहारिणा हरेः। 3/68 इन्द्र के दूत ने रघु के पहुँचने के पहले ही राजा दिलीप को सब वृतान्त सुना दिया
था इसलिए जब रघु आए तब राजा दिलीप ने उनकी बड़ी प्रशंसा की। 36. भूपति :-[भू + क्विप् + पतिः] राजा।
जलाभिलाषी जलमाददानां छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्। 2/6 जब वह जल पीने की इच्छा करती, तभी राजा को भी प्यास लग आती थी, वे छाया के समान ही उसके पीछे-पीछे चल रहे थे। न हीस्टमस्य त्रिदिवेऽपि भूपतेरभूदना साद्यमधिज्य धन्वनः। 3/6 क्योंकि धनुषधारी राजा दिलीप को स्वर्ग की भी वस्तुएँ मिल सकती थी, फिर इस लोक की वस्तुओं की तो बात ही क्या। अदेयमासीत्रयमेव भूपतेः शशिप्रभं छत्रमुभे च चामरे। 3/16 राजा दिलीप इतने प्रसन्न हुए कि छत्र और चँवर तो न दे सके, शेष सब आभूषण उन्होंने उतार कर दे डाले।
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