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कालिदास पर्याय कोश वहाँ से आगे बढ़कर प्रतिहारी सुनंदा ने एक दूसरे राजा को दिखाया, जिससे सब शत्रु काँपते थे। नृपं तमावर्त मनोवनाभिः सा व्यत्य गादन्यवधू वित्री। 6/52 पानी की भँवर के समान गहरी नाभिवाली और किसी अन्य से विवाह की इच्छा वाली इन्दुमती राजा सुषेण को छोड़कर उसी प्रकार आगे बढ़ गई। इन्दीवरश्यामतनुनूपोऽसौ त्वं रोचनागौर शरीर यष्टिः। 6/65 फिर ये राजा नील कमल के समान साँवले हैं और तुम गोरोचन जैसी गोरी हो। इक्ष्वाकुवंश्यः ककुदं नृपाणां ककुत्स्थ इत्याहितलक्षणोऽभूत्। 6/71 देखो! इक्ष्वाकु वंश में, राजाओं में श्रेष्ठ और सुन्दर लक्षणों वाले काकुत्स्थ नाम के राजा हो गए हैं। इति समगुण योगप्रीत यस्तत्र पौरा: श्रवण कटु नपाणामेक वाक्यं विवः। 6/85 दूसरे राजा लोग ज्यों-ज्यों समान गुण वाले अज और इन्दुमती का सम्बन्ध हो जाने की बात नगरवासी से सुनते जा रहे थे, त्यों-त्यों मन में कुढ़ते चले जा रहे थे। दुरितैरपि कर्तुमात्मसात्प्रयतन्ते नृपसूनवो हि यात्। 8/2 जिस राज्य को पाने के लिए दूसरे राजकुमार खोटे उपायों का प्रयोग करते हैं। स पुरस्कृत मध्यमक्रमो नमया मास नृपाननुद्धरन्। 8/9 उन्होंने बीच का मार्ग अपनाया और अपने शत्रु राजाओं को राजगद्दी से उतारे बिना ही उनको उसी प्रकार नम्र कर दिया। वसुधेयमवेक्ष्यतां त्वया वसुमत्या हि नृपाः कलत्रिणः। 8/83 सावधान होकर आप पृथ्वी का पालन कीजिए, क्योंकि राजाओं की सच्ची धर्मचारिणी तो पृथ्वी है। नृपा इवोपप्लविनः परेभ्यो धमोत्तरं मध्यममाश्रयन्ते। 13/7 जैसे शत्रुओं से डरते राजा लोग किसी धर्मात्मा और तटस्थ राजा की शरण लेते
हैं।
नृपस्य वर्णाश्रम पालनं यत्स एव धर्मो मनुना प्रणीतः। 14/67 मनु ने कहा है :-राजाओं का धर्म वर्णों और आश्रमों की रक्षा करना है। तामेक भार्यां परिवादभीरो: साध्वीमपि त्यक्तवतो नृपस्य। 14/86
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