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कालिदास पर्याय कोश क्रव्याद् गणपरीवारश्चिताग्निरिव जंगमः। 15/16 मांस खाने वाले राक्षस उसके चारों ओर चल रहे थे, वह उस चिता की अग्नि के समान लग रहा था जो धुएँ से धुंधली हो, जिसमें से चर्बी की गंध निकलती हो, और जिसके आसपास कुत्ते और गिद्ध आदि मांस भक्षी पशु-पक्षी घूम रहे
हों। 3. तामिस्त्र :-[तमिस्रा + अण] राक्षस, पिशाच।
लवणेन विलुप्तेज्यास्तामिस्त्रेण तमभ्ययुः। 15/2 लवणासुर राक्षस के उपद्रवों के कारण उनकी यज्ञ आदि क्रियाएँ बंद हो चुकी
थीं।
4. दैत्य :-[दिति + ण्य] दिति का पुत्र, राक्षस।
जधान समरे दैत्यं दुर्जयं तेन चावधि। 17/5 वहाँ शक्तिशाली दुर्जय नाम के राक्षस को मारकर वे स्वयं भी वीर गति को प्राप्त
हुए। 5. निशाचर :-[नितरां श्यति तनूकरोति व्यापारान् :-शो + क तारा० + चरः]]
राक्षस, पिशाच। मायाविभिरनालीढमादास्यध्वे निशाचरैः। 10/45 हे देवताओ! यजमान लोग जो विधि से दिया हुआ यज्ञ का भाग तुम्हें दे देंगे, उसे अब राक्षस लोग छीनकर नहीं खा सकेंगे। निशाचरोपप्लुतभर्तृकाणां तपस्विनीनां भवतः प्रसादात्। 14/64 पिछली बार आपकी कृपा से मैंने वनवास के समय बहुत सी ऐसी तपस्विनियों
को अपने यहाँ आश्रय दिया था, जिनके पतियों को राक्षसों ने सता रखा था। तमुपाद्रव दुद्यम्य दक्षिणं दोर्निशाचरः। 15/23
तब वह राक्षस अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाए हुए शत्रुघ्न की ओर झपटा। 6. नैर्ऋत :-[नैऋति + अण्] एक राक्षस।
भयमप्रलयोद्वेलादाचख्युनैर्ऋतोदधेः। 10/34 आजकल ऐसे राक्षस उत्पन्न हो गए हैं, जिन्होंने बिना प्रलयकाल आए ही सारे संसार की मर्यादा भंग करके चारों ओर हाहाकार मचा दिया है। गात्र पुष्परजः प्राप न शाखी नैर्ऋतेरितः। 15/20 (लवणासुर) राक्षस के द्वारा फेंका गया वृक्ष तो उनके शरीर तक नहीं पहुँच सका, केवल उसके फूलों का पराग भर उन तक पहुँच पाया।
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