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कालिदास पर्याय कोश
हिमालय पर अपना यश का झंडा गाड़कर आगे कैलास की ओर न बढ़कर रघु लौट पड़े। श्रुतप्रकाशं यशसा प्रकाशः प्रत्युञ्जगामातिथिमातिथेयः। 5/2 अतिथि का सत्कार करने वाले, अत्यंत शीलवान् और यशस्वी राजा रघु। ऊर्ध्वं गतं यस्य न चानुबन्धिन यशः परिच्छेतुमियत्तयालम्। 6/77 उनका यश कहाँ तक फैला हुआ है, उसकी थाह थोड़े ही है, भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों में सब कहीं तो उनका यश फैला हुआ है। तने स्वहस्तार्जितमेकवीरः पिवन्यशो मूर्तमिवाबभासे।7/63 मानो अपने बाहुबल से उत्पन्न किए हुए मूर्तिमान यश को ही पी रहे हों। यशो हृतं संप्रति राघवेण न जीवितं वः कृपयेति वर्णाः। 7/65 हे राजाओ! इस समय राजकुमार अज ने तुम लोगों का यश तो ले लिया, पर दया करके प्राण नहीं लिए। दशरश्मिशतोपमद्युतिं यशसा दिक्षु दशस्वपि श्रुतम्। 8/29 जो दक्ष सौ किरणों वाले सूर्य के समान तेजस्वी थे, जिनका यश दसों दिशाओं में फैला था। अपिस्वदेहात्किमुतेन्द्रियार्थद्यशोधनानां हि यशो गरीयः। 14/35 क्योंकि यशस्वियों को अपना यश अपने शरीर से भी अधिक प्यारा होता है, फिर स्त्री आदि भोग की वस्तुओं की तो बात ही क्या। तथापि ववृधे तस्य तत्कारि द्वेषिणो यशः। 17/73 पर प्रशंसा की इच्छा न करने पर भी उनका यश बढ़ता ही गया।
योद्धा
1. योद्धा :- [युध् + अच्] योद्धा, सैनिक, लड़ाकू। ।
शार्ङ्ग कूजित विज्ञेय प्रतियोधे रजस्यभूत। 4/62 केवल धनुष की टंकार से ही सैनिक लोग शत्रु को पहचान पाते थे। विनयन्ते स्म तद्योधा मधुभिर्विजयश्रमम्। 4/65 रघु के सैनिक मदिरा पी-पीकर लड़ाई की थकावट मिटाने लगे। रामापरित्राणविहस्तयोधं सेना निवेशं तुमुलं चकार। 5/49 सैनिक लोग अपनी स्त्रियों को छिपाने के लिए सुरक्षित स्थान ढूँढ़ने लगे, उस एक हाथी ने सेना में इतनी भगदड़ मचा दी।
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