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रघुवंश
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ग्रीष्म ऋतु में नितम्ब पर मणि की तगड़ी लटकाकर वे स्त्रियाँ, उसके साथ
संभोग करके प्रसन्न करती थीं। 3. रशना :-[अश् + युच्, रशादेशः] कटिबंध, कमरबंद, स्त्रियों की करधनी।
कस्याश्चिदासीद्रशना तदानीमंगुष्ठमूलार्पितसूत्रशेषा। 7/10 एक स्त्री बैठी हुई मणियों की तगड़ी गूंथ रही थी, मणि तो निकल-निकल कर इधर-उधर बिखर गए, केवल डोरा भर पाँव के अंगूठे में बंधा रह गया। इयमप्रतिबोध शायिनी रशना त्वां प्रधमा रह:सखी। 8/58 तुम्हारी एकान्त सखी यह तगड़ी भी तुम्हें सदा के लिए सोती देखकर मरी सी दिखाई दे रही है। समुद्ररशना साक्षात्प्रादुरासीद् वसुंधरा। 15/83 समुद्र की तगड़ी पहने साक्षात धरती माता प्रकट हुईं। अमीजलापूरित सूत्र मार्गा मौनं भजन्ते रशनाकलापाः। 16/65 तगड़ी के डोरों में जल भर जाने से, इन स्त्रियों के इधर-उधर दौड़ने पर भी ये बज नहीं रहे हैं। चुम्बने विपरिवर्तिताधरं हस्तरोधि रशना विघट्टने। 19/27 जब वह स्त्रियों के ओंठ चूमने लगता, तो मुँह फेर लेती थीं और जब तगड़ी खोलने लगता, तो हाथ थाम लेती। मर्म और गुरुधूपगन्धिभिर्व्यक्त हेमरशनैस्त मेकतः। 19741 जो माड़ी के कारण करकराते थे और जिनके नीचे सोने की तगड़ी झलकती थी।
मेघ
1. अभ्र :-[अभ्र + अच् या अप् + भृ अपो बिभर्ति :- भ + क] बादल।
स्थली नवाम्भः पृषताभि वृष्टा मयूरेकाभिरिवाभ्रवृन्दम्। 7/69 पर जैसे नये बादलों की बूंदों से भीगी हुई पृथ्वी मोर के शब्दों से मेघों का स्वागत करती है, वैसे ही। दोषातनं बुधबृहस्पति योग दृश्यस्तारापतिस्तरल विद्युदिवाभ्रवृन्दम्। 13/76 जैसे बुध और बृहस्पति का साथ होने से विशेष दर्शनीय चंद्रमा संध्या को बिजली वाले बादलों पर बैठता है। तत्रेश्वरेण जगतां प्रलयादिवोर्वी वर्षात्ययेन रुचमभ्रघनादिवेन्दोः। 13/77
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