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कालिदास पर्याय कोश वणगुरुप्रमदाधरदुःसहं जघननिर्विषयीकृत मेखलम्। 9/32 जिसमें पतियों के दाँतों से घायल हुए स्त्रियों के ओंठ दुखा करते हैं और स्त्रियाँ अपनी कमर की तगड़ी भी उतार डालती हैं। श्रियः पद्मनिषण्णायाः क्षौमान्तरित मेखले। 10/8 उन्हीं के पास कमल पर लक्ष्मी बैठी हुई थीं, जिनकी कमर में रेशमी वस्त्र पड़ा हुआ था। उद्यैतक भुजयष्टिमायती श्रोणिलम्बिपुरुषान्त्र मेखलाम्। 11/17 वृक्ष की शाखा के समान अपनी बाँह उठाती हुई और कमर में आँतों की तगड़ी पहनी हुई। अमुसहास प्रहिते क्षणानि व्याजार्ध संदर्शित मेखलानि। 13/42 वे मुस्करा-मुस्कराकर इनपर तिरछी चितवन चलाती थीं और किसी न किसी बहाने अपनी तगड़ी भी उघाड़कर इन्हें दिखा देती थीं। कृतसीता परित्यागः स रत्नाकरमेखलाम्। 15/1 उन्होंने सीता को छोड़कर समुद्र की तगड़ी पहनी हुई पृथ्वी का ही भोग किया। मेखलाभिरसकृच्च बंधनं वंचयन्प्रणयिनीरवाप सः। 19/17 कभी-कभी जब राजा इन कामिनियों को धोखा दे जाता था तो ये राजा को अपनी करधनी से बाँध देती थीं। चूर्णं बभ्रुलुलित स्रगाकुलं छिन्नमेखलमलक्तकांकितम्। 19/25 फैले हुए केसर के चूर्णं से सुनहरा दिखाई देता था, उस पर फूलों की मसली हुई मालाएँ और टूटी हुई तगड़ियाँ पड़ी रहती थीं और जहाँ-तहाँ महावर की छाप पड़ी रहती थी। लोभ्यमाननयनः श्लथांशुकैर्मेखलागुणपदैनितम्बिभिः ।। 19/26 उसकी दृष्टि स्त्रियों के उन नितम्बों पर पड़ जाती थी, जिन पर कपड़ा सरका हुआ रहता था, और तगड़ी ढीली रहती थी, उन्हें देखकर वह मुग्ध हो जाता था। सैकतं च सरयूं विवृण्वतीं श्रोणि बिम्बमिव हंसमेखलम्। 19/40 सरयू को देखता था, जिसके तट पर उजले हंसों की पातें बैठी रहती थीं, मानो सरयू उन सुन्दरियों का अनुकरण कर रही हो, जिनके नितम्बों पर तगड़ी पड़ी
हो।
ग्रीष्मवेषविधिभिः सिषेविरे श्रेणिलम्बिमणि मेखलैः प्रियाः। 19/45
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