________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुवंश
271
धन्विनौ तमृषिमन्व गच्छतां पौरदृष्टिकृतं मार्ग तोरणौ। 11/5 जब धनुष लेकर दोनों राजकुमार विश्वामित्र जी के पीछे चले जा रहे थे, उस समय उन्हें देखते हुए पुरवासियों की आँखें ऐसी दीखती थीं, मानो मार्ग में नेत्रों की वंदनवारें बाँध दी गई हों। तीव्रवेगधुतमार्ग वृक्षया प्रेतचीरवसा स्वनोग्रया। 11/16 बड़े वेग से मार्ग के वृक्षों को ढाती हुई प्रेतों के वस्त्र पहने हुई और भयंकर गरजने वाली। भार्गवस्य सुकृतोऽपि सोऽभवत्स्वर्ग मार्गपरिघो दुरत्ययः। 11/88 यद्यपि परशुरामजी ने बहुत पुण्य किए थे, किंतु वह बाण सदा के लिए उनका स्वर्ग का मार्ग रोककर खड़ा हो गया। अतिष्ठन्मार्गमावृत्य रामस्येन्दोरिव ग्रहः। 12/28 जैसे चंद्रमा का मार्ग राहु रोक लेता है, वैसे ही वह राम का मार्ग रोककर खड़ा हो गया। त्वं रक्षसा भीरु यतोऽपनीता तं मार्गमेताः कृपया लता मे। 13/24 हे भीरु! रावण तुम्हें जिस मार्ग से ले गया था, उस मार्ग की लताएँ मुझे कृपा करके तुम्हारे जाने का मार्ग बताना चाहती थीं। त्रेताग्नि धूमाग्रम निन्द्य कीर्तेस्तस्येदमाक्रान्त विमानमार्गम्। 13/37 तीन अग्नियों से हवन सामग्री की गंध से मिला हुआ, वह धुआँ विमान मार्ग तक उठा चला आ रहा है। यानादवातरददूरमहीतलेन मार्गेण भंगि रचित स्फटिकेन रामः। 13/69 स्फटिक मणियों से जड़ी हुई सीढ़ी से रामचन्द्र जी विमान से उतरे। ते पुत्रयोर्नैऋतशस्त्रमार्गाना निवांगे सदयं स्पृशन्त्यौ। 14/4 पुत्रों के शरीर के जिन अंगों पर राक्षसों के शस्त्रों के घाव बने थे, वहाँ वे दोनों माताएँ इस प्रकार सहलाने लगी, मानो घाव अभी हरे ही हों। तस्य मार्ग वशादेका बभूव वसतिर्यतः। 15/11 मार्ग में जाते हुए उन्होंने पहली रात। तपसा दुश्चरेणापि न स्वमार्ग विलंधिना। 15/53 अपने उस कठोर तप से कभी न पाता, जो वह अपने वर्ण धर्म का उल्लंघन करके चाह रहा था।
For Private And Personal Use Only