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कालिदास पर्याय कोश
गर्भ से दुबली माता कौशल्या, नन्हें से राम को लिए पलंग पर लेटी हुई ऐसी सुन्दर जान पड़ती थीं ।
मातृवर्ग चरणस्पृशौ मुनेस्तौ प्रपद्य पदवीं महौजसः । 11/7
माताओं के चरण छूकर, दोनों राजकुमार उन तेजस्वी मुनि के पीछे चलते हुए ऐसे शोभित होते थे ।
मम्लतुर्न मणि कुट्टिमोचितौ मातृ पार्श्व परिवर्तिनाविव । 11/9
जैसे मणियों से जड़े हुए अपने भवनों में अपनी माता के आसपास घूम रहे हों। मातुर्न केवलं स्वस्याश्रियोऽप्यासीत्परांगमुखः । 12/13
तब वे केवल अपनी माँ से ही नहीं वरन् अयोध्या की राज - लक्ष्मी से भी बड़े चिढ़ गए।
मातुः पापस्य भरतः प्रायश्चित्तमिवाकरोत्। 12/19
मानो भरत जी ने अपनी माता के पाप का प्रायश्चित कर डाला हो ।
तच्चित्यमानं सुकृतं तवेति जहार लज्जां भरतस्य मातुः । 14/16 यह सुनकर भरत की माता के मन में जो आत्मग्लानि भरी हुई थी, वह सब जाती रही ।
सर्वासु मातृष्वपि वत्सलत्वात्स निर्विशेष प्रति पत्तिरासीत् । 14/22 वैसे ही रामचंद्र जी भी सभी माताओं को बराबर प्यार करते थे ।
शुश्रुवान्मातरि भार्गवेण पितुर्नियोगात्प्रहृतं द्विषद्वत् । 14 / 46
लक्ष्मण ने सुन ही रखा था कि पिता की आज्ञा पाकर परशुराम जी ने अपनी माता को वैसे ही निर्दयता से मार डाला था, जैसे कोई अपने शत्रु को मारे । रामस्य मधुरं वृत्तं गायन्तो मातुरग्रतः । 15/34
उन दोनों बालकों ने अपनी माता के आगे राम का यश गा-गाकर ।
स पितुः पितृमान्वंशं मातुश्चानुपमद्युतिः । 17/2
वैसे ही सुशिक्षित अतिथि ने माता और पिता के दोनों कुलों को पवित्र कर
दिया ।
मारुति
1. पवन तनय :- [ पू+ ल्युट् + त्नयः] हनुमान का विशेषण, भीम का विशेषण । लंकानाथं पवनतनयं चोभयं स्थापयित्वा । 15 / 103
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