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रघुवंश
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राम ने हाथ जोड़कर कैकेयी से कहा :-माँ! तुम्हारे ही पुण्य के प्रताप से हमारे पिताजी अपने उस सत्य से नहीं डिगे, जिससे स्वर्ग मिलता है। जननी :-[जन् + णिच् + अनि + ङीप्] माता। ददर्श राजा जननीमिव स्वां गामग्रतः प्रस्त्रविणीं न सिंहम्। 2/61 राजा दिलीप देखते क्या हैं कि आगे स्तनों से दूध टपकाती हुई माता के समान नंदिनी खड़ी है और सिंह का कहीं नाम भी नहीं है। वेषमानजननी शिरश्छिदा प्रागजीयत घृणा ततो मही। 11/65 अपनी काँपती हुई माता का सिर काट लिया था, उस समय उन्होंने पहले तो घृणा को जीत लिया और फिर पृथ्वी को जीत लिया था। अपश्यतां दाशरथी जनन्यौ छेदादिवोपन तरोतत्यौ। 14/1 राम अपनी माताओं से मिले, जो वृक्ष के कट जाने पर मुरझाई हुई लताओं के समान उदास दिख रही थीं। अथाभिषेकं रघुवंशकेतोः प्रारब्धमानन्द जलैनन्योः। 14/7 जिस राज्याभिषेक का आरम्भ माताओं के हर्ष भरे आँसुओं से हुआ था। इति क्षितिः संशयितेव तस्यै ददौ प्रवेशं जननी न तावत्। 14/55 उस समय पृथ्वी ने माता सीताजी को मानो दुविधा के कारण अपनी गोद में नहीं समा लिया। इत्यारोपितपुत्रास्ते जननीनां जनेश्वराः। 15/91
इस प्रकार पुत्रों को राज्य देकर अपनी स्वर्गीय माताओं के श्राद्ध आदि किए। 3. जनयित्री :-[जनयित् + ङीप्] माता
जनयित्री मलं चक्रे यः प्रश्रय इव श्रियम्। 10/70 उन्हें पाकर माता ऐसी शोभा दे रही थीं, जैसे लक्ष्मी के साथ विनय शोभा देता
4. माता :-[मान् पूजायां तृच् न लोपः] माता, माँ ।
वत्सस्य होमार्थ विधेश्च शेषमृघेरनुज्ञामधिगम्य मातः। 2/66 राजा ने कहा :-हे माँ! मैं चाहता हूँ, कि बछड़े के पी चुकने पर हवन क्रिया से बचने पर ऋषि की आज्ञा ले कर। शय्यागतेन रामेण माता शातोदरी बभौ। 10/69
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