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भार्गवाय दृढ़मन्यवे पुनः सत्त्रमुद्यतमिवन्यवेदयत् । 11 /46
मानो उसने महाक्रोधी परशुरामजी को सूचना दे दी हो, कि क्षत्रियों ने अब फिर सिर उठाना प्रारंभ कर दिया है।
कालिदास पर्याय कोश
तं पितुर्वध भवेन मन्युना राजवंश निधनाय दीक्षितम् । 11 / 57
जिन्होंने अपने पिता के मारे जाने पर क्रोध से क्षत्रियों का नाश करने की प्रतिज्ञा कर ली थी, उन्हें देखा ।
त्वां प्रत्यकस्मात्कलुष प्रवृत्तावस्त्येव मन्युर्भरताग्रजे मे । 14/73
फिर भी तुम्हारे साथ जो उन्होंने यह भद्दा व्यवहार किया है, इसे देखकर मुझे उनपर बड़ा क्रोध आ रहा है।
6. रुष : - [ रुष् + क्विप्, रुष् + टाप्] क्रोध, रोष, गुस्सा ।
निर्बन्ध संजातरुषार्थ कार्य म चिन्तयित्वा गुरुणाहमुक्तः । 5/21
पर जब मैंने बार-बार दक्षिणा माँगने के लिए उनसे हठ किया तो वे बिगड़ खड़े हुए और मेरी दरिद्रता का विचार किए बिना ही बोल उठे।
गुस्सा ।
7. रोष : - [ रुष् + घञ् ] क्रोध, कोप,
स रोष दष्टाधिकलोहितोष्ठैर्व्यक्तोर्ध्वरेखा भ्रकुटीर्वहद्भिः 17/58
जिन राजाओं ने क्रोध से चबा-चबाकर ओंठों को लाल कर लिया था और जो भौंहें तान-तानकर हुँकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे
8. संरम्भ :- [ सम् + रभ् + घञ्, मुम्] क्रोध, रोष, कोप ।
प्रणिपातप्रतीकारः संरम्भो हि महात्मनाम् । 4/64
महापुरुषों की कृपा प्राप्त करने का यही उपाय है, कि उनकी शरण में पहुँच जाया जाये ।
मयूर
1. कलापी / कलापिन : - [कलाप + इनि] मोर ।
संरम्भं मैथिली हासः क्षणसौम्यां निनाय ताम् । 12 / 36
सीताजी को हँसते हुए देखकर क्षण भर के लिए सुन्दर रूप धारण करने वाली शूर्पणखा भी एकदम बिगड़ खड़ी हुई ।
अन्योन्य जयसंरम्भो बवृधे वादिनोरिव । 12/92
उनका क्रोध उसी प्रकार बढ़ता जा रहा था, जैसे विजय के लिए शास्त्रार्थ करने वालों का क्रोध बढ़ता चलता है।
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