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रघुवंश
259 6. स्पृह :-[स्पृह + अच् + टाप्] इच्छा, उत्सुकता, प्रबल कामना, लालसा।
द्वन्द्वानि दूरान्तरवर्तिना ते मया प्रिये सस्पृहमीक्षितानि। 13/31 तुमसे इतनी दूर होने के कारण उन्हें देख-देखकर मैं यही सोचा करता था, कि मुझे भी ये दिन कब देखने को मिलेंगे।
मन्यु 1. अमर्ष :-क्रोध , आवेश, कोप, क्रोधपूर्वक।
यैः सादिता लक्षितपूर्वकेतूं स्तानेव सामर्षतया निजघ्नुः। 7/44 तो वे अपने सारथियों को बहुत भला-बुरा कहने लगे और जिनकी मार से वे
घायल हुए थे, उन्हें रथ के झंडों से पहचान-पहचान कर मारने लगे। 2. कोप :-[कोप् + घञ्] क्रोध, गुस्सा, रोष।
क्षत्रकोपदहनार्चिषं ततः संदधे दृशमुदग्रतारकाम्। 11/69
परशुरामजी ने क्षत्रियों को जलाने वाली अपनी टेढ़ी चितवन से राम को देखा। 3. क्रोध :-[क्रुध् + घञ्] कोप, गुस्सा। निचखानाधिक क्रोधः शरं सव्येतरे भुजे। 12/90 रावण ने बड़ा क्रोध करके राम की उस दाहिनी भुजा में बाण मारा। प्रच्छदान्त गलिताश्रु बिन्दुभिः क्रोधभिन्नवलयैर्विवर्तनैः। 19/22 तब वे कामिनियाँ बिना बोले ही बिस्तर के कोने पर आँसू गिराती हुई, क्रोध से कंगन तोड़कर उनसे पीठ फेरकर सो जाती थीं। मत्सर :-[मद् + सरन्] ईर्ष्या, डह, विरोधिता, शत्रुता। स चापमुत्सृज्य विवृद्धमत्सरः प्रणाशनाय प्रबलस्थ विद्विषः। 3/60 धनुष की डोरी कट जाने से इन्द्र को बड़ा क्रोध हुआ, उन्होंने धनुष तो दूर फेंका
और अपने प्रबल शत्रु रघु को मारने के लिए। 5. मन्यु :-[मन् + युच्] क्रोध, रोष, कोप।
बाहुप्रतिष्टम्भविवृद्ध मन्युरभ्यर्ण मागरकृतमस्पृशद्भिः। 2/32 इसी प्रकार हाथ बँध जाने से राजा दिलीप पास ही खड़े अपराधी पर प्रहार न कर सकने के कारण क्रोध से तमतमा उठे। शक्योऽस्य मन्युर्भवता विनेतुंगाः कोटिशः स्पर्शयता घटोनीः। 2/49 यदि अपने तेजस्वी गुरुजी से डरते हो तो उन्हें बड़े-बड़े थनों वाली करोड़ों गायें देकर तम उन्हें मना सकते हो।
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