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रघुवंश
255 १. मन्मथ :-[मन् + क्विप्, मथ् + अच् ष०त०] कामदेव, प्रेम का देवता।
नरपतिश्चकमे मृगयारतिं स मधुमन्मधुमन्मथ संनिभिः। 9/48 कामदेव के समान सुन्दर दशरथ जी ने भी सुन्दरियों के साथ वसंत ऋतु का आनंद लिया और उनके मन में आखेट करने की इच्छा होने लगी। रामममन्मथ शरेण ताडिता दुःसहेन हृदये निशाचरी। 11/20 मानो काम के बाण से घायल हुई कोई, अभिसारिका चंदन का लेप करने अपने
प्रिय के घर जा रही हो। 10. स्मर :-[स्मृ भावे अप्] कामदेव, प्रेम का देवता।
रतिस्मरौ नूनमिमावभूतां राज्ञां सहस्त्रेषु तथाहि बाला। 7/15 ये दोनों पिछले जन्म में रति और कामदेव ही रहे होंगे, इसलिए तो सहस्रों राजाओं के बीच में इन्दुमती ने उन्हें प्राप्त कर लिया। पतिषु निर्विविशुर्मधुमंगनाः स्मरसखं रसखंडनवर्जितम्। 9/36 कामदेव के साथी मद्य को स्त्रियों ने अपने पति के प्रेम में बिना बाधा दिए ही पी लिया। शैलसारमपि नातियत्नः पुष्पचापमिव पेशलं स्मरः। 11/45 उस पर्वत के समान भारी धनुष पर वैसी ही सरलता से डोरी चढ़ा दी, जैसे कामदेव अपने फूलों के धनुष पर डोरी चढ़ाता है।
मधु 1. आसव :-[आ + सु + अण्] अर्क, काढ़ा, मद्यनिष्कर्ष।
तासां मुखैरासवगंधगर्भाप्तान्तराः सान्द्र कुतूहलानाम्। 7/11 मदिरा की गंध से सुवासित मुखों वाली, झरोंखों में उत्सुकता के साथ झाँकती
हुई ऐसी जान पड़ती थीं। 2. मधु :-[मन्यत इति मधु, मन + उ नस्य धः] शहद, पुष्प रस, शराब।
यवनीमुखपद्यानां सेहे मधुमदं न सः। 4/61 वैसे ही रघु के अचानक आक्रमण से मदिरा से लाल गालों वाली यवनियों के मुख कमल मुरझा गए। महार्हसिंहासनसंस्थितोऽसौ सरलमयं मधुपर्कमिश्रम्। 7/18 वहाँ वे सुन्दर बहुमूल्य सिंहासन पर जाकर बैठ गए, भोज ने जो मधुपर्क भेंट किया।
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