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रघुवंश
मैं राजा दशरथ के यहाँ जन्म लेकर रणभूमि को भेंट चढ़ाऊँगा। तेन भूमि निहितैक कोटि तत्कार्मुकं च बलिनाधिरोपितम्। 11/81 राम ने उस धनुष की एक छोर पृथ्वी पर टेक कर जैसे ही उस पर डोरी चढ़ाई। एषा विदूरी भवतः समुद्रात्सकानना निष्पततीव भूमिः। 13/18 दूर निकल आने से यह जंगलों से भरी हुई भूमि ऐसी दिखाई पड़ रही है, मानो समुद्र से अभी अचानक निकल पड़ी हो।। मन्दाकिनी भाति नगोपकंठे मुक्तावली कंठगतेव भूमेः। 13/48 पर्वत के नीचे बहती हुई मंदाकिनी ऐसी जान पड़ती है, मानो पृथ्वी रूपी नायिका के गले में मोतियों की माला पड़ी हुई हो।। छाया हि भूमेः शशिनो मलत्वे नारोपिता शुद्धिमतः प्रजाभिः। 14/40 निर्मल चंद्र-बिंब के ऊपर पड़ी हुई पृथ्वी की छाया को लोग चंद्रमा का कलंक कहते हैं और झूठ होने पर भी सारा संसार इसे ठीक मानता है। हेम भक्तिमती भूमेः प्रवेणीमिव पिप्रिये। 15/30 यमुना ऐसी सुन्दर दिखाई पड़ीं, मानो वह सुनहरी फुन्दों वाली पृथ्वी की चोटी
हों।
स तीरभूमौ विहितोकपार्या मानायिभिस्तामपकृष्टनक्राम्। 16/55 सरयू के तट की भूमि पर डेरे डाल दिए गए और मल्लाहों ने जाल डालकर ग्राह आदि सब जीव जंतु उसमें से निकाल डाले। भुजेन रक्षा परिघेण भूमेरुपैतु योगं पुनरंसलेन। 16/84 उस भुजा में फिर बांध लीजिए, जो पृथ्वी की रक्षा करती है। अस्पृष्ट खड्गत्सरुणापि चासीद्रा क्षावती तस्य भुजेन भूमिः। 18/48 यद्यपि उनकी भुजा तलवार की मूढ भी नहीं छू सकी थी, फिर भी उन्होंने पृथ्वी
की रक्षा भली-भांति कर ली। 11. मही :-[मह् + अच् + ङीप्] पृथ्वी।
महीतलस्पर्शनमात्र भिन्नमृद्धं हि राज्यं पदमैन्द्र माहुः। 2/50 सुख और समृद्धि से भरा हुआ राज्य पृथ्वी पर ही स्वर्ग बन जाता है, अन्तर सिर्फ इतना होता है कि यह भूमि का स्वर्ग होता है, वह देवलोक का। भल्लापवर्जितैस्तेषां शिरोभिः श्मश्रुलैर्महीम्। 4/63 उनमें जो जीते बच गए, उन्होंने अपने लोहे के टोप उतार कर पृथ्वी के राजा रघु के चरणों में रख दिए।
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