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कालिदास पर्याय कोश भुवस्तल मिव व्योम कुर्वन्व्योमेव भूतलम्। 4/29
आकाश को पृथ्वी बना दिया और पृथ्वी भी आकाश जैसे लगने लगी। 10. भूतल :-[भू + क्विप् + तलम्] पृथ्वीतल, धरातल, पृथ्वी।
भुवस्तलमिव व्योम कुर्वन्व्योमेव भूतलम्। 4/29
आकाश को पृथ्वी बना दिया और पृथ्वी भी आकाश जैसे लगने लगी। 11. भूमि :-[भवन्त्यस्मिन् भूतानि :-भू + मि किच्च वा ङीप्] पृथ्वी, मिट्टी,
भूमि। मृगैर्वर्तितरोन्मथ मुरजां गन भूमिषु। 1/52 वहीं आँगन में बहुत से हरिण सुख से भूमि में बैठकर जुगाली कर रहे थे।
आस्तीर्णाजिन रत्नासु द्राक्षावलय भूमिषु। 4/65 रघु के सैनिक दाख की लताओं से घिरी हुई पृथ्वी पर सुहावनी मृग छालाएँ बिछाकर बैठ गए। कामं नृपाः सन्तु सहस्त्रशोऽन्ये राजन्वती माहुरनेन भूमि। 6/22 वैसे ही यद्यपि संसार में सहस्रों राजा हैं, किन्तु पृथ्वी इन्हीं के रहने से राजा वाली कहलाती है। विनीतनागः किल सूत्रकारैरैन्द्रं पदं भूमि गतोऽपि भुंक्ते। 6/27 हाथियों की विद्या के बड़े-बड़े गुणी लोग इनके हाथियों को सिखाते हैं, ये पृथ्वी पर रहते हुए इन्द्र ही समझे जाते हैं। भुजे भुजंगेन्द्र समान सारे भूयः स भूमेधुरमा ससज्ज। 7/74 उन्होंने शेषनाग के समान अपनी बलवती भुजाओं से फिर पृथ्वी का राजकाज संभाल लिया। तुरगवल्गन चंचल कुंडलो विरुरुचे रुरुचेष्टित भूमिषु। 9/51 घोडे के वेग से चलने के कारण उनके कानों के कुंडल भी हिल रहे थे, इस वेष मे चलते-चलते उस जंगल की भूमि में पहुँचे जहाँ रुरु जाति के हरिण बहुत घूमा करते हैं। स्थिर तुरंगम भूमि निपानवन्मृग व योग वयोपचितं वनम्। 9/53 वे उस जंगल में पहुँचे, जहाँ की पृथ्वी घोड़ों के लिए पक्की थी। वहाँ वहुत से हरिण, पक्षी और बनैली गाएँ घूमा करती थीं। सोऽहं दाशरथिर्भूत्वा रणभूमेर्बलि क्षमम्। 10/44
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