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रघुवंश
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सैषा स्थली यत्र विचिन्वता त्वां भ्रष्टं मया नूपुरमेकमुाम्। 13/23 यही वह स्थान है, जहाँ तुम्हें ढूंढ़ते हुए मैंने पृथ्वी पर पड़ा हुआ, तुम्हारा बिछुआ देखा था। तत्रेश्वरेण जगतां प्रलयादिवोर्वी वर्षात्ययेन रुचमभ्रघनादिवेन्दोः। 13/77 जैसे आदि वराह ने प्रलय से पृथ्वी को उबार लिया था, जैसे वर्षा बीतने पर शरद बादलों से चाँदनी छीन लेता है। पुरं नवीचारपां विसर्गान्मेघा विदाघग्लपितामिवोर्वीम्। 16/38 जैसे इन्द्र की आज्ञा से बादल, जल बरसाकर गरमी से तपी हुई पृथ्वी को हरी-भरी कर देते हैं, वैसे ही अयोध्या का कायापलट कर दिया। ततः परं तत्प्रभवतः प्रपेदे ध्रुवोपमेयो ध्रुवसंधिरुर्वीम्। 17/34
उनके पीछे उनके ध्रुव के समान निश्चल पुत्र संधि पृथ्वी के राजा हुए। 4. क्षिति :-[क्षि + क्तिन] पृथ्वी, भूमि, निवास, आवास, घर।
अकरोद चिरेश्वरः क्षितौ द्विषदारम्भफलानि भस्मसात्। 8/20 अज ने पृथ्वी पर शत्रुओं की सब चालें नष्ट कर डाली। इति चोपनतां क्षितिस्पृशं कृतवाना सुरपुष्पदर्शनात्। 8/81 इस पर ऋषि ने कहा :-जब तक तुम्हें स्वर्गीय पुष्प नहीं दिखाई पड़ेंगे, तब तक तुम्हें पृथ्वी पर रहना ही पड़ेगा। इति क्षिति संशयितेव तस्यै ददो प्रवेशं जननी न तावत्। 14/55 उस समय पृथ्वी ने सीताजी को मानो दुविधा के कारण अपनी गोद में नहीं समा लिया। क्षितिरिव नभोबीजमुष्टिं दधाना। 19/57
जैसे सावन में बोए हुए मुट्ठी भर बीजों को पृथ्वी छिपाए रहती है। 5. गा :-[गै + डा] पृथ्वी ।
गामात्तसारां रघुरप्यवेक्ष्य निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुवेरात्। 5/26 रघु ने भी देखा कि पृथ्वी पर तो धन है नहीं। इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि कुबेर से ही धन लिया जाये। तौ विदेहनगरी निवासिनां गां गताविव दिवः पुनर्वसू। 11/36 वे दोनों राजकुमार जनकपुर के निवासियों को ऐसे सुन्दर लग रहे थे, मानो दो पुनर्वसु नक्षत्र ही पृथ्वी पर उतर आए हों।
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