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रघुवंश
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वीचिलोल भुजयोस्तयोर्गतं शैशवाच्चपलमप्यशोभत। 11/8 बचपन के कारण लहरों के समान चंचल बाहों वाले राजकुमारों का चुलबुलापन ऐसा सुन्दर लग रहा था। ज्यानिघात कठिन त्वचो भुजान्स्वान्विधूयधिगिति प्रतस्थिरे। 11/40 अपनी उन भुजाओं को धिक्कारते हुए चले गए, जिन पर धनुष की डोरी की फटकार से बड़े-बड़े घट्टे पड़ गये थे। निचखानाधिक क्रोधः शरं सव्येतरे भुजे। 12/90 बड़ा क्रोध करके उस दाहिनी भुजा में बाण मारा। भुजविजित विमानरत्नाधिरूढः प्रतस्थे पुरीम्। 12/104 अपने बाहुबल से जीते हुए पुष्पक विमान पर चढ़कर अयोध्या की ओर लौटे। सभाजने मे भुजमूर्ध्वबाहुः सव्येतरं प्राध्वमितः प्रयुक्त। 13/43 देखो वे मुझे देखकर अपनी दाहिनी भुजा उठाकर मेरा स्वागत कर रहे हैं। भुजेन रक्षापिरथेण भूमेरुपैतु योगं पुनरंसलेन। 16/84 आप इसे लीजिए और उस भुजा में फिर बाँध लीजिए, जो पृथ्वी की रक्षा करती
है।
अस्पृष्टखड्गत्सरुणापि चासीद्रक्षावती तस्य भुजेन भूमिः। 18/48 यद्यपि उनकी भुजा तलवार की मूठ भी नहीं छू सकी थी, फिर भी उसने पृथ्वी की रक्षा भली भाँति कर ली। भोक्तुमेव भुजनिर्जितद्विषा न प्रसाधयितुमस्य कल्पिता। 19/3 इसलिए उन्हें तो केवल भोग करने के लिए ही राज्य और भुजाएँ मिली थी,
राज्य के शत्रुओं को मिटाने के लिए नहीं। 4. हस्त :-[हस्+तन्, न इट्] हाथ।
अवांग्मुश्वस्योपरि पुष्पवृष्टिः पपात विद्याधर हस्त मुक्ता। 2/60 नीचे मुँह किए हुए राजा दिलीप के ऊपर आकाश से विद्याधरों ने खुले हाथों से फूलों की झड़ी लगा दी। ततः समानीय स मानितार्थी हस्तौ स्वहस्तार्जित वीर शब्दः। 2/64 तब मँगतों को मनचाहा दान देने वाले और अपने पराक्रम से वीर कहलाने वाले राजा दिलीप ने हाथ जोड़कर यह वर माँगा कि। वातोऽपि नास्त्रं सयदंशुकानि कोलम्बयेदाहरणाय हस्तम्। 6/75
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