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कालिदास पर्याय कोश
स्पृशन्करेणानतपूर्वकायं संप्रस्थितो वाचमुवाच कौत्सः 1 5/32 जब कौत्स चलने लगे, तब राजा ने बड़ी नम्रता से उन्हें प्रणाम किया, , उन्होंने राजा के सिर पर हाथ धरते हुए कहा ।
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कश्चित्कराभ्यामुपगूढ़ नालमालोल पत्राभिहितद्विरेफम् । 6/13
कोई राजा हाथ में सुन्दर कमल लेकर उसकी डंठल पकड़कर घुमाने लगा, उसके घूमने से भरे तो इधर-उधर भाग गए।
वज्रांशुगर्भांगुलिरन्ध्रमेकं व्यापारयामास करं किरीटे । 6/19
एक दूसरा राजा बार-बार अपने हाथ से अपने मुकुट को सीधा कर रहा था, उसके ऐसा करने से उंगलियों के बीच का भाग रत्नों की किरणों से चमक उठता
था।
करेण वातायनलम्बितेन स्पृष्टस्त्वया चंडि कुतूहलिन्या । 13/21
हे चण्डी ! जब तुम खेल-खेल में अपना हाथ विमान से बाहर निकालकर बादल को छू लेती हो ।
आस्फालितं यत्प्रमदाकराग्रैर्मृदंगधीर ध्वनिमन्वगच्छत् । 16/13 नगर की जिन बावलियों का जल पहले जल-क्रीड़ा करने वाली सुन्दरियों के हाथ के थपेड़ों से मृदंग के समान गंभीर शब्द करता था । कराभिधातोत्थित कन्दुके यमालोक्य बालाति कुतूहलेन । 16/83
यह मेरी कन्या गेंद खेल रही थी, इसके हाथ की थपकी से गेंद ऊपर उछल गई। उसे देखने के लिए उसने ऊपर आँखें उठाई तो देखा कि ।
2. बाहु : - [ बाघ् + कु, घस्य हः भुजा ] हाथ, भुजा ।
प्रांशुलभ्ये फले लोभादुबाहुरिव वामनः । 1/3
जैसे कोई बौना अपने नन्हें हाथ ऊपर उठाकर उन फलों को तोड़ना चाहता हो, हाँ तक केवल लंबे हाथ वालों की ही पहुँच हो सकती है। बाहुप्रतिष्टम्भविवृद्धमन्यु रभ्यर्णमागरकृतमपस्पृशद्भिः । 2 / 32
इसी प्रकार हाथ बंध जाने से राजा दिलीप पास ही खड़े अपराधी पर प्रहार न कर सकने के कारण क्रोध से तमतमा उठे ।
तथेति गामुक्तवते दिलीपः सद्यः प्रतिष्टम्भविमुक्तबाहुः । 2/59 यह सुनकर सिंह बोला- अच्छी बात है, यही सही ! तत्काल दिलीप का हाथ खुल गया ।
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