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रघुवंश
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देवताओं ने देखा कि विष्णु भगवान् शेष-शय्या पर लेटे हुए हैं। अत्यारूढं रिपोः सोढं चन्दनेनेव भोगिनः। 10/42 मैंने उस दुष्ट का दिन-दिन ऊपर चढ़ना उसी प्रकार सहा है, जैसे अपने ऊपर चढ़ते हुए साँप को चन्दन का पेड़ सह लेता है। वैनतेयशमितस्य भोगिनो भोगवेष्टित इव च्युतोमणिः। 11/59 जैसे गरुड़ से मरा हुआ कोई साँप अपने सिर से गिरी हुई मणि के चारों और
कुंडली मारकर पड़ा हुआ हो। 7. राजिल :-[राज्+इलच्] साँपों की एक सरल जाति जिसमें विष नहीं होता।
किं महोरगविसर्पि विक्रमो राजिलेषु गरुडः प्रवर्तते। 11/7 क्योंकि भला बड़े-बड़े सर्पो पर आक्रमण करने वाला गरुड़ क्या कभी जल के
छोटे-छोटे साँपों पर आक्रमण किया करता है। 8. व्याल :-[वि+आ+अल्+अच्] साँप।
तेयाच्छान्त व्यालाम वनिमपरः पौरकान्तः शशास। 16/88
जिससे सर्प शांत हो गए और कुश भली भाँति राज्य करने लगे। 9. सर्प :-[सृप्+घञ्] नाग, साँप।
न तु सर्प इव त्वचं पुनः प्रतिपेदे व्यपवर्जितां श्रियम्। 8/13 जैसे साँप अपनी केंचुली छोड़कर फिर उसे ग्रहण नहीं करता, वैसे ही उन्होंने जिस राज्यलक्ष्मी को एक बार छोड़ दिया फिर स्वीकार नहीं किया। हृद्यमस्य भयदापि चाभवद्रत्नजातमिव हारसर्पयोः। 11/68 इसलिए जैसे गले के हार और सर्प दोनों में रहने वाली मणि आनंद भी देती है
और भय भी। सुप्तसर्प इव दंडघट्टनाद्रोषितोऽस्मि तव विक्रमश्रवात्। 11/71 पर जैसे डंडे से छेड़ देने पर साँप फुफकार उठता है, वैसे ही तुम्हारा पराक्रम सुनकर मेरे शरीर में भी आग लग गई है।
भुज 1. कर :-[करोति, कीर्यते अनेन इति, कृ (कृ)+अप्] हाथ।
वामेतरस्तस्य करः प्रहर्तुर्नखप्रभाभूषित कंक पत्रे। 2/31 उनके दाहिने हाथ की उँगलियाँ उनके नखों से चमकने वाले बाणों के पंखों से चिपक गई।
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