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कालिदास पर्याय कोश
वृत्तान्तेन श्रवणविषयप्रापिणा तेन भर्तुः सा दुर्वारं कथमपि परित्यागः दुःखं विषेहे। 14/87 जब सीताजी ने अपने पति की ये बातें सुनीं, तब तक उनके मन में जो छोड़े जाने का दुःख था, वह कम हो गया। सा सीतामंकमारोप्य भर्तृप्रणिहितेक्षणाम्। 15/84 उन्होंने उन सीता जी को गोद में उठा लिया, जो पति राम की ओर टकटकी बाँधे थीं।
भिषंग
1. तूण :-[तूण्+घञ्] तरकस।
स दक्षिणं तूण मुखेन वामं व्यापारयन्हस्तमलक्ष्यताजौ। 7/57 वे इतनी फुर्ती से बाण चला रहे थे कि यह पता ही नहीं चलता था, कि उन्होंने
कब अपना हाथ तूणीर में डाला और कब बाण निकाला। 2. निषंग :-[नि+सञ्ज+घञ्] तरकस।।
ततो निषंगाद् समग्रमुद्धृतं सुवर्ण पंखद्युति रंजितांगुलीम्। 3/64 तब रघु ने तूणीर से आधे निकाले हुए उस बाण को फिर से उसमें डाल दिया,
जिसके सुनहरे पंख की चमक से रघु की उंगलियों के नख भी चमक उठे थे। 3. भिषंग:-तरकस।
जाताभिषंगो नृपतिर्निषंगादुद्धृर्तुमैच्छत्प्रसभोद्धृतारिः। 2/30 बस झट राजा ने उस सिंह को मारने के लिए तूणीर से बाण निकालने को हाथ उठाया।
भिषज
1. भिषज :-[विभेव्यस्मात् रोगः भी+षुक्, ह्रस्वश्च] वैद्य, चिकित्सक। प्राणान्तहेतुमपि तं भिषजामसाध्यं लाभं प्रियानुगमने त्वरया स मेने। 8/93 पर अपनी प्रिया के पीछे प्राण देने को वे इतने उतावले थे कि उन्होंने प्राण हर लेने वाली और वैद्यों से अच्छी न होने वाली उस शोक की बर्थी को भी सहायक ही समझा। दृष्टदोषमपि तन्न सोऽत्यजत्संग वस्तु भिषजामनाश्रवः। 19/49 वैद्यों के बार-बार रोकने पर भी उसने काम को जगाने वाली ये वस्तुएँ नहीं छोड़ी।
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