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रघुवंश
राम ने पहले तो सुग्रीव आदि मित्रों को सब प्रकार की सामग्री से सजे भवनों में
ठहराया।
कामिनी सहचरस्य कामिनस्तस्य वेश्मसु मृदंग नादिषु । 19/5
वह राज भवन की उन भीतरी कोठियों में पड़ा रहता थ, जिनमें बराबर मृदंग बजते रहते थे ।
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7. सद्मन: - [ सीदत्यस्मिन् - सद्+मनिन् ] घर, मकान, आवासस्थान ।
न केवलं सद्मनि मागधीपतेः पथि व्यजृम्भन्त दिवौकसामपि । 3 / 19 केवल सुदक्षिणा के पति दिलीप के ही राजमंदिर में मनोहर बाजे और वेश्याओं के नाच आदि उत्सव नहीं हो रहे थे, वरन् आकाश में देवताओं के यहाँ भी नाच-गान हो रहा था ।
यमात्मनः सद्मनि संनिकृष्टो मन्द्र ध्वनित्याजितयामूर्तयः । 6/56 ठीक इनके राज भवन के नीचे समुद्र हिलोरें लेता है, जो नगाड़े ही ध्वनि से भी गंभीर अपने गर्जन से
उद्भासितं मंगल संविधाभिः संबन्धिनः सद्म समाससाद | 7/16 उस राज भवन में पहुँचे, जो मंगल सामग्रियों की सजावट से जगमगा रहा था । तयोर्यथाप्रार्थितमिन्द्रि यार्था ना सेदुषोः सद्मसु चित्रवत्सु। 14/5
वे दोनों उस भवन में इच्छानुसार विलास करते थे, जिसमें वनवास के समय के चित्र टंगे थे ।
8. सौध : - [ सुधया निर्मित रक्तं वा अण] विशालभवन, महल, बड़ी हवेली । ततस्तदालोकनतत्पराणां सौधेषु चामीकर जालवत्सु । 7/5
उनको देखने के लिए अपने भवनों के झरोखों की ओर दौड़ पड़ीं। तस्यायमन्तर्हितसौधभाजः प्रसक्त संगीत मृदंगघोषः । 13/40
यह जो नाच-गाना सुनाई दे रहा है, यह जल के भीतर बने हुए उन्हीं के भवन का है। वहीं के मृदंग की ध्वनि गूँज रही है ।
विवेश सौधोद्नतलाज वर्षामुत्तोरणा मन्वयराजधानीम् । 14/10
उस राजधानी अयोध्या में पैर रखा, जो चारों ओर बन्दनवारों से सजाई गई थी, जहाँ के श्वेत भवनों पर से धान की खीलें बरस रही थीं ।
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तत्रसौधगतः पश्यन्यमुनां चक्रवाकिनीम् । 15 / 30
वहाँ एक ऊँचे भवन पर चढ़कर उस नीले जलवाली यमुना को देखा, , जिसमें बहुत से चकवे चहचहा रहे थे ।