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कालिदास पर्याय कोश
प्रातः काल का पवन वृक्षों की शाखाओं पर झूलने वाले ढीले कोरवाले फूलों को गिराता हुआ, सूर्य की किरणों से खिले हुए कमलों को छूता हुआ चल रहा
भवतिविरल भक्तिर्लान पुष्पोपहारः स्वकिरणपरिवेषोभेदशून्यः प्रदीपाः ।
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रात की सजावट के फूल मुरझाकर झड़ गए हैं, उजाला हो जाने के कारण दीपक का प्रकाश भी अब अपनी लौ से बाहर नहीं जाता। मदोत्कटे रेचित पुष्प वृक्षा गन्धद्विपे वन्यइव द्विरेफाः। 6/7 जैसे फूलवाले वृक्षों को छोड़कर मद बहाने वाले जंगली हथियों पर भौरे झुक पड़ते हैं। तया स्रजा मंगलपुष्पमय्या विशालवक्षःस्थललम्बया सः। 6/84 जब अज के गले में वह फूलों की मंगलमाला पड़ी और उनकी चौड़ी छाती पर झूल गई। इति चोपनता क्षितिस्पृशं कृतवाना सुरपुष्पदर्शनात्। 8/81 इस पर ऋषि ने कहा- जब तक तुम्हें स्वर्गीय पुष्प नहीं दिखाई पड़ेंगे, तब तक तुम्हें पृथ्वी पर ही रहना पड़ेगा। अंशैरनुययुर्विष्णुं पुष्पैर्वायुमिव दुमाः। 10/49 जैसे वायु के चलने पर वन के वृक्ष अपने फूल उसके साथ भेज देते हैं, वैसे ही विष्णु देवताओं का कार्य करने के लिए चले तो देवताओं ने अपने-अपने अंश उनके साथ भेज दिए। सा चकारांग रागेण पुष्पोच्चलित षट्पदम्। 12/27 उसने ऐसा सुगंधित अंगराग लगाया कि उसकी पवित्र गंध पाकर भौरे भी जंगली फूलों से उड़-उड़कर उधर ही टूट पड़े। परस्परशरवाताः पुष्पवृष्टिं न सेहिरे। 12/94 पर राम के अस्त्र रावण के ऊपर बरसते हुए फूलों को ऊपर ही तितर-बितर कर देते और रावण के बाण राम पर बरसने वाले फूलों को आकाश में ही छितरा देत
थे।
उपनत मणि बंधे मूर्ध्नि पौलस्त्य शत्रोः सुरभि सुरविमुक्तं पुष्पवर्ष पपात।
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