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कालिदास पर्याय कोश
तस्य पूर्वोदितां निन्दां द्विजः पुत्र समागतः। 14/57 पुत्र के जी उठने पर उस ब्राह्मण ने स्तुति से पहले जो निन्दा की थी, उसे धो डाला। स्वर संस्कार वत्यासौ पुत्राभ्यामथ सीतया। 15/76 पुत्रों के साथ जाती हुई सीता ऐसी लग रही थीं, मानो स्वर और संस्कारों के साथ गायत्री जा रही हों। स तक्ष पुष्कलौ पुत्रौ राजधान्योस्तदाख्ययोः। 15/89 उन्होंने तक्ष और पुष्कल नाम के योग्य पुत्रों को, तक्ष और पुष्कल राजधानियों का राजा बना दिया। इत्यारोपितपुत्रास्ते जननीनां जनेश्वराः। 15/91 इस प्रकार पुत्रों को राज्य देकर उन चारों ने अपनी स्वर्गीय माताओं के श्राद्ध किए। अतिथि नाम काकुत्स्थात्पुत्रं प्राप कुमुद्वती। 17/1 वैसे ही कुश को कुमुद्वती से अतिथि नाम का पुत्र प्राप्त हुआ। अनूनसारं निषधान्नगेन्द्रात्पुत्रं यमाहुर्निषधाख्यमेव। 18/1 अतिथि ने निषध पर्वत के समान बलवान पुत्र उत्पन्न किया और उसका नाम भी निषध रक्खा। स क्षेमधन्वाममोघधन्वा पुत्रं प्रजाक्षेम विधानदक्षम्। 18/9 उन सफल धनुषधारी पुंडरीक ने प्रजा का कल्याण करने में समर्थ अपने पुत्र क्षेम धन्वा को राज सौंप दिया। पुत्रस्तथैवात्मजवत्सलेन स तेन पित्रा पितृमान्बभूव। 18/71 वैसे ही पुत्र को प्यार करने वाले पिता को पाकर देवानीक भी पिता वाले हुए। तं पुत्रिणां पुष्करपत्रनेत्रः पुत्रः समारोपयदग्रसंख्याम्। 18/30 उनके सुपुत्र ने पुत्रवानों का शिरोमणि बना दिया, उन कमललोचन का नाम भी
पुत्र ही था। 11. प्रजा :-[प्र+जन्+ड+टाप्] संतान, प्रजा, संतति।
यश से विजिगीषूणां प्रजायै गृहमेधिनाम्। 1/7 अपना यश बढ़ाने के लिए ही दूसरे देशों को जीतते थे, जो भोग-विलास के लिए नहीं वरन् सन्तान उत्पन्न करने के लिए ही विवाह करते थे।
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