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रघुवंश
वैसे ही चारणपुत्रों की सुरचित वाणी सुनकर राजकुमार अज की नींद खुल गई और वे उठ बैठे। पुत्रो रघुस्तस्य पदं प्रशस्ति महाक्रतोर्विश्वजितः प्रयोक्ता। 6/76 उन्हीं के पुत्र रघु उनके पीछे राजा हुए, जिन्होंने विश्वजित यज्ञ में अपना सब कुछ बाँट दिया। समुपास्यत पुत्र भोग्यया स्नुषयेवाविकृतेन्द्रियः श्रियाः। 8/14 जिस भूमि पर उनके पुत्र राज्य कर रहे थे, वह जितेन्द्रिय रघु को फल-फूल देकर उसी प्रकार सेवा कर रही थी, मानो उनको पतोहू ही हो। शल्यप्रोतं प्रेक्ष्य सकुम्भं मुनिपुत्रं तापादन्तः शल्य इवासीक्षितिपोऽपि।
9/75 देखा कि नरकट की झाड़ियों में बाँण से बिंधा हुआ, घड़े पर झुका हुआ किसी मुनि का पुत्र पड़ा है। उसे देखकर उनको ऐसा कष्ट हुआ मानो इन्हें भी बाण लग गया हो। ताभ्यां तथागतमुपेत्य तमेकपुत्रमज्ञानतः स्वचरितं नृपतिः शशंस। 9/77 वहाँ पहुँचकर उन्होंने उनसे सब कथा बता दी कि भूल से मैंने आपके इकलौते पुत्र पर किस प्रकार बाण चला दिया है। दिष्टान्तमाप्स्यति भवानपि पुत्रशोकादन्त्ये वयस्यहमिवेति तमुक्तवन्तम्।
9/79 हे राजा! जाओ, तुम भी हमारे ही समान बुढ़ापे में पुत्र शोक से प्राण छोड़ोगे। पत्रं तमोपहं लेभे नक्तं ज्योतिरवौषधिः। 10/66 जैसे पर्वत की बहुत सी बूटियों में रात को अंधेरा दूर करने वाला प्रकाश आ जाता है, वैसे ही तमोगुण को दूर करने वाला पुत्र उत्पन्न किया। पुत्रजन्मप्रवेश्यानां तूर्याणां तस्य पुत्रिणः। 10/76 पुत्रवान् राजा दशरथ के यहाँ पुत्र जन्म के समय नगाड़े आदि बाजे पीछे बजे। ते पुत्रयो ऋत शस्त्र मार्गाना निवांगे सदयं स्पृशन्त्यौ। 14/4 पुत्रों के शरीर के जिन अंगों पर राक्षसों के शस्त्रों के घाव बने थे, वहाँ वे दोनों माताएँ इस प्रकार सहलाने लगीं, मानो घाव अभी हरे ही हों। तस्यै मुनिर्दोहदलिंगदर्शी दाश्वान्सुपुत्राशिषमित्युवाच। 14/71 ऋषि ने गर्भ के चिह्न देखकर उन्हें आशीर्वाद दिया, कि तुम पुत्रवती हो। आशीर्वाद देकर वे बोले।
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