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कालिदास पर्याय कोश
किया और जैसे स्कन्द को उत्पन्न करने वाले शंकर जी के उस तेज को गंगा जी ने धारण किया, जिसे अग्नि भी नहीं संभाल सकी थी। शशाक निर्वापयितुं न वासवः स्वतश्च्युतंवह्नि मिवाद्भिरम्बुदः। 3/58 जैसे बादल घोर वर्षा करके भी अपने हृदय में उत्पन्न बिजली को नहीं बुझा सकता। तस्मै सम्यग्धुतो वह्निर्वाजिनीराजनाविधौ। 4/25 यात्रा के लिए चलने से पहले घोड़ों की पूजा के लिए हवन होने लगा। धूमो निव]न समीरणेन यतस्तु कक्षस्तत एव वह्निः। 7/55 क्योंकि वायु धुएँ को भले ही उड़ा दे, पर आग तो उसके सहारे घास-फूस को पकड़ती ही चली जाती है। इतरो दहने स्वकर्मणां ववृते ज्ञानमेयन वह्निना। 8/20 रघु ने ज्ञान की अग्नि से अपने सारे कर्मों को राख कर डाला। अबिन्धनं वह्निमसौ बिभर्ति प्रह्लादनं ज्योतिरजन्यनेन। 13/4 अपने शत्रु बड़वानल को भी यह अपनी गोद में पालता है और सुखकारी प्रकाश वाला चंद्रमा भी इसी से उत्पन्न हुआ है। रराज शुद्धेति पुनः स्वपुर्यै संदर्शिता वह्निगतेव भा। 14/14 अग्नि के समान प्रकाशमान उनका शरीर ऐसा दिखाई पड़ रहा था, मानो पुरवासियों को सीताजी की शुद्धता दिखलाने के लिए राम ने उन्हें फिर अग्नि में बैठा दिया हो। वाच्यस्त्वया मद्वचनात्स राजा वह्नौ विशुद्धामपि यत्समक्षम् 14/61 राजा से जाकर तुम मेरी ओर से कहना आपने अपने सामने ही मुझे अग्नि में
शुद्ध पाया था। 11. विभावसु :- अग्नि। विभावसुः सारथिनेव वायुना घन व्यापायेन गभस्तिमानव। 3/37 जैसे वायु की सहायता से अग्नि, शरद ऋतु के खुले हुए आकाश को पाकर
सूर्य।
यथा वायु विभवस्वोर्यथा चन्द्र समुद्रयोः। 10/82
जैसे वायु और अग्नि तथा चन्द्रमा और समुद्र का जोड़ा कभी अलग नहीं होता। 12. शिखी :-[शिखा अस्त्यस्य इनि] अग्नि।
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