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रघुवंश
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पुत्र
1. अपत्य : - [ न पतन्ति पितरोऽनेन - नञ् + पत्+यत् ] संतान, बच्चे बेटा या बेटी । अपत्यैरिव नीवारभागधेयोचितैर्मृगैः । 1/50
मृगों को भी ऋषि पत्नियों के बच्चों के समान तिन्नी के दाने का अभ्यास पड़
गया था।
इतो भविष्यत्यनघप्रसूतेर पत्य संस्कारमयो विधिस्ते । 14 / 75 तुम्हारी पवित्र सन्तान के जात कर्म आदि संस्कार मैं यहीं करूँगा । 2. आत्मज : - [ अत्+मनिण्+ज: ] पुत्र ।
तस्यामात्मा नुरूपायमात्मजन्मसमुत्सुकः । 1/33
उनकी बड़ी इच्छा थी कि मेरी प्यारी पत्नी से मेरे जैसा पुत्र हो ।
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अतः पिता ब्रह्मण एव नाम्ना तमात्मजन्मानमजं चकार । 5/36 तो ब्राह्म मुहूर्त में जन्म होने से पिता ने ब्रह्मा के नाम पर पुत्र का नाम अज रक्खा। सूतात्मजाः सवयसः प्रथित प्रबोधं प्राबोधयन्नुषसि वाग्मिरुदारवाचः । 5/65 दिन निकलते ही उनकी समान अवस्था वाले और मधुर बोलने वाले सूतों के पुत्र यह स्तुति गा-गाकर बुद्धिमान अज को जगाने लगे।
अतो नृपाश्चक्षमिरे समेताः स्त्रीरत्नंलाभं न तदात्मजस्य । 7/34 इसीलिए वे यह भी नहीं सह सके कि रघु का पुत्र हम लोगों के रहते हुए स्त्रियों रत्न इन्दुमती को लेकर चला जाय।
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रघुरश्रुमुखस्य तस्य तत्कृतवानीप्सितमात्मजप्रियः । 8/13
अपने पुत्र अज को रघु बहुत प्यार करते थे, इसलिए अज की आँखों में आँसू देखकर वे रुक तो गए।
समदुःखसुखः सखीजनः प्रतिपच्चन्द्र निभोऽयमात्मजः । 8 / 65
तुम्हारे सुख दुःख की साथी ये सखियाँ खड़ी हैं, शुक्ल पक्ष की चन्द्रमा के समान प्रसन्न मुख वाला तुम्हारा पुत्र भी यहीं है।
ता नराधिपसुता नृपात्मजैस्ते च ताभिरगमन्कृतार्थताम् । 11 /56
उन चारों राजकुमारों को पाकर राजकन्याएँ और राजकन्याओं को पाकर राजकुमार निहाल हो गए।
पुत्रस्तथैवात्मज वत्सलेन स तेन पित्रापितृमान्बभूव । 18 / 11