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रघुवंश
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सा दुर्निमत्तोपगताद्विषा दात्सद्यः परिम्लन मुखारविन्दा। 14/50
यह असगुन होते ही उनका मुख कमल उदास हो गया। 5. इन्दीवर :-[इंद्याः वारो वरणम् अत्र-ब० स०] नीलकमल, कमल।
इन्दीवर श्यामतनुर्नृपोऽसौ त्वं रोचना गौर शरीर यष्टिः। 6/65 फिर ये नील कमल के समान साँवले हैं और तुम गोरोचन जैसी गौरी हो। अन्यत्र माला सितपंकजानामिन्दीवरैरुत्खचितान्तरेव। 13/54 कहीं तो ये चमकने वाली इन्द्रनील मणियों से गुंथी हुई माला जैसी लगती हैं,
कहीं नीले और श्वेत कमलों की मिली हुई माला जैसी दिखाई पड़ रही हैं। 6. उत्पल :-[उत्क्रान्तः पलं मांसम्-उद्पल्+अच्] नीलकमल, कमल, कुमुद।
अगच्छदंशेन गुणाभिलाषिणी नवावतारं कमलादिवोत्पलम्। 3/36 जैसे सुन्दरता की देवी मुरझाए हुए कमल को छोड़कर नए कमल पर चढ़ जाती
है।
धारां शितां रामपरश्वधस्य संभावयत्युत्पलपत्रसाराम्। 6/42 ये परशुरामजी के उस फरसे की तेज धारा को भी कमल की पंखड़ी के समान कोमल समझते हैं, जिसने युद्ध में क्षत्रियों का संहार कर डाला था। श्यामीचकार वनमाकुल दृष्टि पातैर्वातेरितोत्पलदलप्रकरैरिवारैः। 9156 वह सारा जंगल ऐसा लगने लगा मानो वायु ने नीले कमलों की पंखड़ियाँ लाकर यहाँ बिखेर दी हों। यत्रोत्पल दलल्कैव्यमस्त्राण्यापुः सुरद्विषाम्। 12/86 जिस पर शत्रु राक्षसों के अस्त्र ऐसे लगते थे, मानो वे अस्त्र न होकर कमल के
फूल हों। 7. कमल :-[कं जलमलतिभूषयति-कम्+अल्+अच्] कमल।
अगच्छदंशेन गुणाभिलाषिणी नवावतारं कमलादिवोत्पलम्। 3/36 जैसे सुंदरता की देवी मुरझाए हुए कमल को छोड़कर नये कमल पर चढ़ जाती
नृपतिमन्यमसेवत देवता सकमला कमलाधवमर्थिषु। 9/16 दूसरा राजा ही कौन सा था, जिसके यहाँ हाथ में कमल धारण करने वाली पतिव्रता लक्ष्मी स्वयं जाकर रहतीं। करिष्यामि शरैस्तीक्ष्णैस्तच्छिरः कमलोच्चयम्। 10/44
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