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रघुवंश
155 गोदावरी नदी के सारसों की पाँते ऊपर उड़ती चली आ रही हैं, मानो ये तुम्हारी आगवानी करने आ रही हों। गगन :-[गच्छन्त्यस्मिन्-गम्+ल्युट्, ग आदेशः] आकाश, अन्तरिक्ष । अवोचदेनं गगनस्पृशा रघुः स्वरेण धीरेण निवर्तयन्निव। 3/43 रघु ने आँख गड़ाकर आकाश में देखा और समझ लिया कि ये इन्द्र ही हैं; ऊँचे गंभीर स्वर में इस प्रकार इन्द्र से बोले। गगनमश्वखुरोद्धतरेणुभिसविता स वितानमिवकरोत्। 9/50 तब उनके घोड़ों की टापों से इतनी धूल उठी कि आकाश में चंदोवा सा तन गया। हेमपक्षप्रभाजालं गगने च वितन्वता। 10/61
अपने सोने के पंखों से प्रकाश फैलाता हमें आकाश में उड़ाकर ले जा रहा है। 6. ज्योतिपथ :-आकाश, आसमान। ज्योतिष्पथादवततार सविस्मयाभिरुद्वीक्षितं प्रकृतिभिर्भरतानुगामिः ।
___13/68 वह विमान आकाश से नीचे उतर आया और भरतजी के पीछे चलने वाली सारी
जनता आँख फाड़-फाड़कर उन्हें देखने लगी। 7. द्यौ :-[द्युत् डो] स्वर्ग, आकाश।
अथ नयनसमुत्थं ज्योतिरत्रेरिव द्यौः। 2/75 जैसे अत्रि ऋषि के नेत्र से निकली हुई चंद्रमा रूपी ज्योति को आकाश ने धारण किया। द्यावापृथिव्योः प्रत्यग्रमहर्पतिरिवातपम्। 10/54
जैसे सूर्य अपनी नई धूप पृथ्वी और आकश दोनों में बाँट देता है। 8. दिव :-[दीव्यन्त्यत्र दिव्+बा आधारे डिवि-तारा०] स्वर्ग, आकाश।
कैलासनाथोद्वहनाय भूयः पुष्पं दिवः पुष्पकमन्वमस्त। 14/2 तब राम ने उस स्वर्ग के फूल के समान पुष्पक विमान को भी कुबेर के पास
जाने की आज्ञा दी। १. नभ :-[नभ्+अच्] आकाश, अंतरिक्ष।
हिरण्मयीं कोषगृहस्य मध्ये वृष्टिं शशंसुः पतितांनभस्तः। 5/29 राजकोश में बहत देर तक आकाश से सोने की वर्षा होती रही है।
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