________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
144
कालिदास पर्याय कोश
उसे देखते ही उन दोनों भाइयों ने अपने धनुषों को पृथ्वी पर टेककर डोरियाँ चढ़ा लीं ।
द्वेषिता हि बहवो नरेश्वरास्तेन तात धनुषा धनुर्भृतः । 11 /40
इस धनुष को उठाने में बड़े-बड़े धनुषधारी राजा अपना सा मुँह लेकर रह गए। सोऽस्त्रमुग्रजवमस्त्रकोविदः संदधे धनुषि वायुदैवतम् । 11/28
दिव्य अस्त्र चलाने में राम का हाथ ऐसा सधा हुआ था कि उन्होंने झट से अपने धनुष पर वायव्य अस्त्र चढ़ाया ।
व्यादिदेश गणशोऽथ पार्श्वगान्कार्मुकाभिहरणाय मैथिलः । 11 /43 इसलिए जनकजी ने अपने सेवकों को उसी प्रकार धनुष लाने की आज्ञा दी । 6. शरासन :- [ शृ+अच्+असनम् ] धनुष ।
स एवमुक्त्वा मघवन्तमन्मुखः करिष्यमाणः सशरंशरासनम् । 3/52 यह कहकर रघु ने धनुष पर बाण चढ़ाया और पैंतरा साधकर इन्द्र की ओर मुँह करके खड़े हो गए।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रघुः शशांकार्धमुखेन पत्रिणा शरासनज्यामलुनाद्विडौजसः । 3/59 तब रघु ने अर्द्धचन्द्र के आकार के बाण से धनुष की वह डोरी काट डाली, जिसमें से बाण चलाते समय ऐसा प्रचंड शब्द होता था ।
अजयदेकरथेन स मेदिनीमुदधिनेमिमधिज्य शरासनः । 9/10
एक धनुष लेकर और अकेले एक रथ पर चढ़कर ही, उन्होंने समुद्र तक फैली हुई सारी पृथ्वी जीत ली।
मृगवनोपगमक्षमवेषभृद्विपुलकंठ निषक्त शरासनः । 9/50
जब अहेरी वेष बनाकर, अपने ऊँचे कांधे पर धनुष टांगे राजा दशरथ ।
7. शार्ङ्ग : - [ शृङ्ग+अण्] धनुष, विष्णु का धनुष ।
शार्ङ्ग कूजित विज्ञेय प्रतियोधे राजस्यभूत् । 4/62
सेना के चलने से इतनी धूल उड़ी कि आसपास कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता था, केवल धनुष की टंकार से ही सैनिक लोग शत्रु को पहचान पाते थे । निवर्तयिष्यन्विशिखेन कुम्भे जघान नात्यायतकृष्टशार्ङ्गः । 5/50 इसलिए उन्होंने अपने धनुष को थोड़ा सा खींचकर एक बाण उसके मस्तक में ऐसा मारा, जिससे वह लौट जाय ।
For Private And Personal Use Only