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रघुवंश
धनुष यज्ञ की बात सुनकर दोनों राजकुमारों को बड़ा कुतूहल हुआ, इसलिए विश्वामित्र जी उन दोनों को लेकर ।
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स्वं विचिन्त्य च धनुर्दुरानमं पीडितो दुहितृ शुल्क संस्थया । 11/38 तब उन्हें इस बात का बड़ा पछतावा हुआ कि मैंने अपनी कन्या के विवाह के लिए, यह धनुष तोड़ने का अड़ंगा लगा क्यों दिया?
तत्प्रसुप्त भुजगेन्द्र भीषणं वीक्ष्य दाशरथिराददे धनुः । 11 /44
वह धनुष ऐसा जान पड़ता था मानो कोई बड़ा भारी अजगर सोया हुआ हो, राम ने देखते-देखते शंकर जी के धनुष को उठा लिया।
भज्यमानमतिमात्र कर्षणात्तेन वज्रपुरुष स्वनं धनुः । 11 /46
राम ने धनुष को इतना तान लिया कि वह वज्र के समान भयंकर शब्द करके कड़कड़ाता हुआ टूट गया ।
मैथिलस्य धनुरन्य पार्थिवैस्त्वं किलानमितपूर्वमक्षणोः । 11/72 जनकजी के जिस धनुष को कोई राजा झुका भी न सका, उसी को तूने तोड़
दिया ।
स नादं मेघनादस्य धनुश्चेन्द्रायुधप्रभम्। 12/79
वैसे ही लक्ष्मण भी मेघनाद के गर्जन को और इन्द्रधनुष के समान धनुष को क्षण भर में ले बीते ।
5. धनुष : - [ धन्+उसि ] धनुष ।
शास्त्रेष्वकुठिता बुद्धिमौर्वी धनुषि चातता । 1/19
शास्त्रों का उन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था और धनुष चलाने में वे एक ही थे । वे अपना सब काम अपनी तीखी बुद्धि और धनुष पर चढ़ी हुई डोरी इन दो से ही निकाल लेते थे ।
नवाम्बुदानीकमुहूर्तलांक्षने धनुष्यमोघं समधत्त सायकम् । 3/53
इन्द्र का वह धनुष इतना सुंदर था कि थोड़ी देर के लिए उसने नए बादलों में इन्द्र धनुष जैसे रंग भर दिए ।
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सशरवृष्टिमुचा धनुषा द्विषां स्वनवता नवतामरसाननः । 9/12 नए कमल के समान सुंदर मुख वाले दशरथ जी ने अपने बाण बरसाने वाले धनुष से शत्रुओं को मारकर बिछा दिया ।
निन्यतुः स्थल निवेशिताटनी लीलयैव धनुषी अधिज्यताम् । 11/14