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रघुवंश
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उन्होंने धनुष तो दूर फेंका और अपने प्रबल शत्रु रघु को मारने के लिए। रघोरमिभवाशंकि चुक्षुभे द्विषतां मनः। 4/21 उधर शत्रुओं के मन में यह जानकर खलबली मच गई, कि अब न जाने कब रघु चढ़ाई कर बैठे। द्विषां विषा काकुत्स्थस्तत्र नाराचदुर्दिनम्। 4/41 वैसे ही रघु ने भी बाणों की वर्षा से स्नान करके विजय पाई। ततः परं दुष्प्रसहं द्विषद्भिर्नृपं नियुक्ता प्रतिहारभूमौ। 6/31 वहाँ से आगे बढ़कर प्रतिहारी सुनंदा ने एक दूसरे राजा को दिखाया, जिससे सब शत्रु काँपते थे। कश्चिद्विषत्खड्गहृतोत्तमाँगः सद्यो विमान प्रभुतामुपेत्य। 7/51 एक योद्धा का सिर शत्रु की तलवार से कट गया, युद्ध में मृत्यु होने से वह देवता हो गया और विमान पर चढ़कर। तस्तार गां भल्लनिकृतकण्ठैहुँकार गर्भेषितां शिरोभिः। 7/58 जो शत्रु राजा हुँकार करते हुए आगे बढ़ रहे थे, उनके सिर काट-काट कर अज ने पृथ्वी पाट दी। अकरोद चिरेश्वरः क्षितौ द्विषदारंभफलानि भस्मसात्। 8/20 अज ने पृथ्वी पर शत्रुओं की सब चालें नष्ट कर डाली। सशरवृष्टिमुचा धनुषा द्विषां स्वनवता नवतामरसाननः। 9/12 वैसे ही नये कमल के समान सुदंर मुख वाले दशरथजी ने, अपने बाण बरसाने वाले धनुष से शत्रुओं को मारकर बिछा दिया। रन्धान्वेषणदक्षाणां द्विषाममिषतां ययौ। 12/11 दशरथ जी के शत्रु तो ऐसे अवसर की ताक में ही थे, उन्होंने झट धावा बोल दिया। ते रामाय वधोपायमाचरव्युर्विबुध द्विषः। 15/5 तब मुनियों ने राम को बताया कि जब तक शत्रु लवणासुर के हाथ में भाला रहेगा, तब तक उसका हारना कठिन है। वयसां पंक्तयः पेतुर्हतस्योपरि विद्विषः। 15/25 मरे हुए शत्रु के ऊपर गिद्ध आदि पक्षी टूट पड़े। वशी सुतस्तस्य वंशवदत्वात्स्वेषा मिवासी द्विषताम पीष्टः। 18/13
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