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कालिदास पर्याय कोश अभिजनग्मुनिदाघार्ताश्छाया वृक्षमिवाध्वगाः। 10/5 जैसे धूप से व्याकुल होकर पथिक, छाया वाले वृक्ष के नीचे पहुँच जाते हैं। तीव्र वेगधुतमार्गवृक्षया प्रेतचीवरवसा स्वनोग्रया। 11/16 बड़े वेग से मार्ग के वृक्षों को ढाती हुई प्रेतों के वस्त्र पहने और भयंकर गरजने वाली। नृत्यं मयूराः कुसुमानि वृक्षा दर्भानुपात्तान्विजहुर्हरिण्यः। 14/69 उनका रोना सुनकर मोरों ने नाचना बंद कर दिया, वृक्ष फूल के आंसू गिराने लगे
और हरिणियों ने मुँह में भरी घास का कौर गिरा दिया। पयोघटैराश्रम बालवृक्षान्संवर्धयन्ती स्वबालानुरूपैः। 14/78 जो जल के घड़े तुमसे उठ सकें, उन्हें लेकर तुम आश्रम के पौधों को प्रेम से सींचा करो। विनाशात्तस्य वृक्षस्य रक्षस्तस्मै महोपलम्। 15/21 उस वृक्ष के टूक-टूक हो जाने पर उस राक्षस ने। अथ धूमाभिताम्राक्षं वृक्षशाखावलम्बिनम्। 15/49 एक पेड़ की शाखा पर उलटा लटका हुआ एक मनुष्य, आग का धुआँ पी-पी
कर अपनी आँखें लाल कर लिया था। 8. शाखिन :-[शाखा+इनि] शाखाधारी, शाखाओं से युक्त, वृक्ष।
नामधेयानि पृच्छन्तौ वन्यानां मार्गशाखिनाम्। 1/45 उनसे राजा दिलीप और रानी मार्ग के वनों और वृक्षों का नाम पूछती चलती थी। नाम्भसां कमलशोभिनां तथा शाखिनां च न परिश्रमचिछदाम्। 11/12 कमलों से भरे हुए सरोवरों तथा थकावट हरने वाले वृक्षों की छाया को देखकर भी। निवातनिष्कम्पतया विभान्ति योगाधिरूढा इव शाखिनोऽपि। 13/52 यहाँ के वृक्ष भी वायु न चलने के कारण ऐसे स्थिर खड़े हैं, मानो वे भी योग साध रहे हों। गात्रं पुष्परजः प्राप न शाखी नैर्ऋतेरितः। 15/20 वह वृक्ष तो उनके शरीर तक नहीं पहुँच सका, केवल उसके फूलों का पराग भर उन तक पहुँच पाया।
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