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कालिदास पर्याय कोश
तन्मा व्यथिष्टा विषयान्तरस्थं प्राप्तसि वैदेहि पितुर्निकेतम् । 14 / 72 बेटी ! यहाँ भी तुम अपने पिता का ही घर समझो और शोक छोड़ दो। गौर
1. गौर :- [ गु+र, नि० ] श्वेत ।
कैलासगौरं वृषभारुरुक्षोः पादार्पणानुग्रहपूतपृष्ठम् । 2 / 35
जब शंकर जी कैलास पर्वत के समान उजले नंदी पर चढ़ते हैं, तब उसके पहले अपने चरणों से मेरी पीठ पवित्र करते हैं। प्रस्थानप्रणतिभिरंगुलीषु चक्रुमलिस्रक्च्युतमकरंदरेणुगौरम् | 4 / 88
समय उन राजाओं ने जब रघु के चरणों में झुके तो उनके सिर की मालाओं से जो पराग गिर रहा था, उससे रघु के चरणों की उंगलियाँ गोरी हो गईं। इंदीवर श्याम तनुर्नृपोऽसौत्वं रोचना गौरशरीर यष्टिः । 6/65
ये नीलकमल के समान साँवले हैं और तुम गोरोचन जैसी गोरी हो । सा चूर्णगौर रघुनंदनस्य धात्रीकराभ्यां करभोपमोरुः । 6/83
हाथी की सूँड़ के समान जंघाओं वाली इंदुमती ने वह स्वयंवर की माला सुनंदा हाथों रघु के पुत्र अज के गले में पहनवा दी।
2. शुचि : - [ शुच् + कि ] विमल, विशुद्ध, स्वच्छ, श्वेत ।
उपचितावयवा शुचिभिः कणैरलिक दंब कयोगमुपेयषी। 9/44, तिलक के फूलों के गुच्छे उजले पराग से भरे बढ़ चुके थे और ऐसे सुदंर लगने लगे ।
ततः कक्ष्यांतरन्यस्तं गजदंतासनं शुचिः । 17/21
तब वह हाथीदांत के बने उजले सिंहासन पर बैठा, जो राजभवन में एक ओर रक्खा हुआ था।
श्वेत ।
3. शुभ्र : - [ शुभ्+रक् ] चमकीला, उज्ज्वल,
पपौ वशिष्ठेन कृताभ्यनुज्ञः शुभ्रं यशो मूर्तमिवातितृष्णः । 2/69
वशिष्ठजी की आज्ञा से नंदिनी के दूध को पी लिया, वह दूध ऐसा जान पड़ता था कि स्वयं उजला यश ही दूध बनकर चला आया हो।
अन्यत्र शुभ्रा शरदभ्रलेखा रंध्रेष्विवालक्ष्यनभः प्रदेशा। 13 /56 कहीं पर शरद ऋतु के उन उजले बादलों के समान जान पड़ती हैं, जिनके बीच-बीच में नीला आकाश झाँक रहा हो ।
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