________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प. 1] मुख्यमन्त्रोद्धारः कौस्तुभो व्योमसभिन्नः परमात्मा ततो द्विज // 154 // ऊर्ध्वाधोऽनलसभिन्नं कुर्यात्तदनु नारद / अकारेणाङ्कितं तं वै तं तमूर्जेन कारयेत् // 155 / / ततो व्योमान्वितो नेमी नमस्कृतिरनन्तरम् / प्रभात्मने पदं दद्यात्कौस्तुभाय पदं ततः // 156 // स्वाहान्वितस्समणवः कौस्तुभस्य प्रकीर्तितः / षोडशार्णो महामन्त्रो नास्ति तद्यन्न साधयेत् // 157 // [मालामन्त्रः] पोद्धरेत्मणवान्ते तु धरेशं तदधो न्यसेत् / तृप्तिसंज्ञं च तस्याधो वरुणं विनिवेश्य च // 158 // मायाव्योमान्वितः पिण्डो नमस्कारसमन्वितः / स्थलवर्णद्वयं दद्याजलोद्भूतपदं ततः // 159 // भूषिते वनमाले स्वाहा समेतं पदं ततः। एकोनविंशवर्णस्तु मालामन्त्र उदाहृतः // 160 // अभीष्टसिद्धिदो विम नित्यमाराधकस्य च / [पद्ममन्त्रः] प्रणवस्यावसाने तु वामनाख्यं नियोजयेत् // 161 // सोमाख्यं तदधो योज्य उद्दामोपरि संस्थितः / ज्यैलोक्यैश्वर्यदोपेतः पिण्डो नतिसमन्वितः // 162 // श्रीनिवासपदं दद्यात्पद्माय तदनन्तरम् / स्वाहान्वितस्तु पद्मस्य मन्त्रः स्यात्चिदशाक्षरः // 163 // प्रयच्छत्यतुलां भूतिं भक्तानामक्षयां द्विज / [शंखमन्त्रः] पणवं पूर्वमादाय परमात्मानमुद्धरेत् // 164 // भेदयेद्भुवनान्तेन त्र्यैलोक्यैश्वर्यदेन तु / नमस्कारं क्रमं कुर्यादेतदेवाक्षरं त्रिधा // 165 // महाशङ्खाय च स्वाहा शङ्खाख्यस्त्रिदशाक्षरः / पन्नश्शुभतरः प्रोक्तो धियं विद्यां प्रयच्छति / / 166 // For Private and Personal Use Only