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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
जिन तात्त्विक प्रौपदेशिक व दार्शनिक :--
तात्विक भक्ति रूप में
"
17
"
"1
"
73
"
6
39
प्राचार व दण्ड
विधान
तात्विक
प्रोपदेशिक
दार्शनिक
11
17
जैन तात्विक
"1
13
"
21
"
37
13
-
11
मा.
"1
11
"
39
सं.
अ. मा.
मा.
"
11
7
प्रा.
प्रा.सं.
प्रा.
"
13
प्रा.मा.
प्रा.
प्रा.मा.
प्रा.
प्रा.सं.
प्रा.
=
1
4
3
गुटका
7
गुटका
3
3
7
4
गुटका
2
गुटका
12
3
2
2
8
8
5
5
2
4
3
www.kobatirth.org
8 A
26 × 11 × 17 × 58 संपूर्ण 34 गाथा
34"
24 x 11x9x 32
23 x 13 x 11 x 37
15 x 12व22 x 16
24 x 10 x 11 × 32
15 x 12 × 11 x 20
22 x 7 x 9 x 38
27 x 13 x 12 x 50
26 x 12 x 4 x 42
27 x 12 × 21 x 64
25 x 11 x 11 × 38
26 × 11 × 11 x 42
25 x 11 x 17 x 41
26 × 11 × 4 × 32
25 x 11 x 9 x 28
25 x 11 × 6 x 36
28 × 11 × 6 × 50
4, 53 | 27 x 11 x 10 x 30
26x12x12 x 42
26 × 11 x 13 × 45
:
,"
33
=
"1
"1
23
71
"
पूर्ण 37 गाथा तक
26 × 13 × 15 × 32 संपूर्ण 6 सज्झायें + गद्य
16 x 23 x 11 x 20
13 ढालें
25 x 12 x 17 x 48
23 x 20 x 21 x 38
"
31
93
23
11
11
11
17
91
19
34
37
34
9
2 गीत (26+
27 गाथा
91 श्लोक
"
"1
43 गाथा
33 स्तव
11
51 गाथा की
51 गाथा
6
58
33 गाथा
""
"2
52 गाथा
51 गाथा
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52 गाथा की
51 गाथा
"1
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
10
1792
1880, मुंबई,
अमर सिंदूर
1897
1903
19वीं
1903
19वीं
1961.
19वीं
1909
1797
19वीं
1544
1613
1666
17वीं
1752 x नरेन्द्र
1758
1764
18वीं
18वीं प्रकबराबाद
1800
19वीं
1870. विक्रमपुर, जिनसुंदर
[ 115
11
1728 की कृति