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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ ऊपर उपकारकरें इस उपद्रवकीशांति करें हम आपकी आज्ञा पालनकरेगे तब आचार्य बोले जैनधर्मअंगीकार करो या अपना एक पुत्र या पुत्री हमको देदेओ तो हम अभी उपाय कर देवे तब लोगोंने श्री पूज्यों का वचन अंगीकार किया तब वहां शांति भई तब बहुत लोग श्रावक होगए जिन्होंने जैनधर्म नहिं अंगीकार किया उन्होंने अपना एक पुत्र वा पुत्री आचार्यजीको दिया वहां ५०० पांचसै साधु भए और ७०० साध्वियां भई, वहां भी महावीर स्वामी की प्रतिमा स्थापी वहांसे विहार करके उच्चनगर जाते हुए बीचमें अन्तराय भूत जो विरोधीलोग थे उन्होंको प्रतिबोधे बड़नगर आए वहां प्रवेशोत्सवहुआ बहुतलोगोंकोप्रतिबोधेवहां कितनेकईरपालुब्राह्मणवगैरहःलोगोंने एक मरनेवाली गायको जिनमंदिरमें रखदी गाय मरगई बाद लोगोंने कहा यह जैनदेव गोघातक है श्रावक लोगसुनते घभराए और श्रीपूज्योंसे कहने लगे महाराज लोग अपवाद करते हैं बाद श्री पूज्योंने मांत्रिक प्रयोगसे गायको वहांसे उठाई गाय चली और रुद्रालय में जाके गिरी तब ईरपालु लोग लज्जित होके आचार्य के पावों में गिरे और कहने लगे हमारा अपराधक्षमा करें अबहम ऐसा कभी नहीं करेंगे आपकी संतति के जो यहां आयेंगे उन्होंका प्रवेश उत्सव वगैरह : हम लोग करंगे आचार्यश्रीने वहांसे विहार किया गुर्जरदेश में होके लाटदेशमें नर्मदा के किनारे भड़ौच ( भरूछ ) नगर पधारे वहां मुगलका राज्य था प्रवेश उत्सवमें मुगलका पुत्र आयाथा बहुत लोंगों की भीडथी उसमें वह मुगलका पुत्र घबराके अकस्मात मरगया For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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