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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ach अर्थः-इन्द्रसें भगवान्ने आयुःका प्रमाण कहा बाद इन्द्रने निगोदका स्वरूप पूछा आचार्यने कहा ॥ ४५ ॥ हरिसभरनिम्मरेणं हरिणा जो संत्थुओ महासत्तो। जेण सपयम्मि सूरी वि ठाविओ गुणिसु बहुमाणो ॥४६॥ अर्थः-हर्षके समूहसे निर्भर इन्द्रने जिस महासात्विककी स्तुति करी जिस आचार्य ने अपने पदमें आचार्य स्थापा गुणीमें बहुमान होवे है ऐसा विचारके ऐसे ॥ ४६ ॥ रक्खियचरित्सरयणं पयडियजिणपवयणं । वंदामि अज्ज रक्खियमलक्खियंतं क्खमासमणं ॥४७॥ अर्थः-चारित्ररत्नकीरक्षाकियाहै जिसने जैनसिद्धान्तका प्रथम अनुयोग कियाजिसने प्रशान्तमनजिसका ऐसे गंभीर अंतःकरणजिन्होंका ऐसे क्षमाश्रमणआर्यरक्षितमरिःको मैं नमस्कार करूं ॥४७॥ तयणुजुगपघरगुणिणो जाया जायाणं जे सिरोमणिणो। सन्नाणचरणगुणरयणजलहिणो पत्तसुयनिहिणो ॥४८॥ अर्थः-उन्होंके अनन्तर आचार्यों में शिरोमणिः सज्ञान चरणगुणरत्नोंकेसमुद्र, पायाहैश्रुतनिधानजिन्होंने ऐसे युगप्रधान आचार्यभए॥४८॥ परवादिवारवारणवियरणे जे मियारिणो गुरुणो । ते सुगहिय नामाणो, सरणं मह हंतु जइपहुणो ॥४९॥ अर्थ:-परवादीरूपहाथियोंकोविदारण करनेमें सिंहके जैसे ऐसे जे गुरुः सुगृहीतनामधेय उनआचार्योका मेरेको शरण होवो॥४९॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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