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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५ यह इहां पर कोइ भी विधिचैत्य हेनहिं इसलिये जिनवल्लभगणि वाचनाचार्य श्रावकादि समुदाय साथ जगजाहिर रीतिसें आज यहां हमारे मन्दिरमें आकर पहिले पहेल कल्याणका आराधन करेंगें, और हमारी आचरणाविरुद्ध स्वमंतव्यकों पोषण करेंगें, इस वजेसें इहांपर हमारी आचरणा आम्नायमें धक्का पहोंचायेंगें, और लोकोमें हमारी हासी निंदा होगी इसवास्ते यह आज कल्याणककाआराधनकरणायुक्तनहिं, परन्तु यह आचार्यविशेषश्रुतवान है युगप्रधानआगमकोंजानतें हैं, और इस समय इहांपर इनके मुताबिक दूसरा कोइभी आचार्य है नहीं, और इससमय यह युगप्रधान आचार्य है, शुद्ध प्ररूपक है, सुविहितमार्ग में चलनेवाले हैं, वायुकेमुताबिकअप्रतिबद्ध विहार करणेवालें हैं, सरदऋतुके जलमुताबिक शुद्धहृदयवालें हैं, चरण करणमें विशेषउपयोगी है, अपने गुणोंसें इहां पर स्वदर्शन परदर्शन में प्रसिद्धहवे हैं, नगरवासी सर्व परदर्शनवाले नाह्मण क्षत्रिय वैश्य वगेरे लोक भ्रमरकी तरह गुणोसें रंजित होकर निरंतर सेवा करतें हैं, परम भक्त हुवे हैं, हमारे श्रावक समुदायकोंभी सुविहितमार्गका उपदेश द्वारा भाग बहुतसे हमारे भक्त श्रावकोंको अपणें भक्त करलिये हैं, बहुत हमारे श्रावक लोक स्वेच्छासें शुद्धप्ररूपक शुद्ध चारित्रिया जाणके तथा इनका शुद्धआचारदेखके इस समय इनके भक्त हुवे हैं, प्रायेंकर आधे श्रावक तो हमारे इनके तरफ चले गये हैं सेस रहे हैं वेभी सायत न चले जावेंगे इस हेतुसें इनकों अपनें मंदिरवगेरे धर्मस्थानोंमें नहिं प्रवेशकरनेदेना यहहमारे पाडकर For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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