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साध्वीनें वीर गर्भापहार कल्याणक, कल्याणकतरीकेकवीभीमेनें मेरीउंबरमें नकीया नसुणा नदेखा,
सुविहितमुनीनांदर्शनाभावात्,
चैत्यवासिनांकल्याणकतयानिषेधात्, सुविहितमुनियोंके दर्शनके अभावसें, चैत्यवासीयोंके तो यह गर्भापहार कल्याणक रूपता करके निषेध करणेंसें, इसलिये तिस
चैत्यवासनी आर्याने अपणे मनमें विचारा कि यहां चित्रकूटनगरमें हमारी प्रबलता विशेष होनेपर पहिले कोइभी सुविहित मार्गवाले श्वेताम्बराचार्यनें आयके वीरगर्भापहारकल्याणकादिशुद्धप्ररूपणा नहिं करणेंपाये, और यहां रहके हमारे प्रतिकूल प्रगटपणे शुद्ध धर्मोपदेश सुविहित साधु श्रावकादि मार्गोपदेश वीर गर्भापहार कल्याणकादि शुद्धप्ररूपणारूपकार्य पहिले कीसीसुविहित आचार्यनें आयके नहिं करा और यह वीरगर्भापहारकल्याणक आराधन आदि धर्मकार्य हमारे मन्दिरमें हमारे प्रतिकूल प्रगटपणे कीसीने ऐसा पहिले वर्ताव नहिं कीया, और इस समय ( इस वखतमें) "एएजूअप्पहाणायरिआ सुद्धपरूवगा सुविहियमग्ग विहारिण वाऊ इव अप्पडिबद्धा सारय सलिलं व सुद्धहियया, चरणकरणोवजुत्ता भयेणएए संमुहेण कोवि पडिसेहिउं समागमिस्सइ सवेवि कायरा इच्चाइचिंतिऊ ण जेणकेणवि उवायेण अहं पडिसेहामि जहाणं आम्हाणं परंपराणं ण हवइ लोवो तहासमायरामि" यह जिनवल्लभगणिवाचनाचार्यजी बहुत बडे आडंबरपूर्वक श्रावकादिसमुदायसाथ आयरहे हैं, और इनोंका
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