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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar कोई नर नारक का जन्म नहीं होता, इस श्रुतिसें जीवकी नास्ती सिद्ध होती है, और दूसरी श्रुति कहती है कि यह आत्मा ज्ञान मय अर्थात् ज्ञान स्वरूप है इस्से आत्माकी सिद्धी होती है, अब ये दोनों श्रुतियों परस्पर विरोधी होनेसें प्रमाण नहीं हो शक्ती है और बहुत परस्पर आत्माके स्वरूपमें विरोधी मत है, कोई कहता है कि-"एतावानेव पुरुषो, यावानिद्रियगोचरः ॥ भद्रे वृकपदं पश्य, यद्वदंत्यवहुश्रुताः" ॥१॥ यहभी एक आगम कहता है तथा "न रूपं भिक्षवः पुद्गल" अर्थात् आत्मा अमूर्ति है, यहभी एक आगम कहता है, तथा "अकर्ता निर्गुणो भोक्ता आत्मा, अर्थः- अकर्ता सत्व, रज अरु तम, इन तीनों गुणोंसें सुख दुःखका भोगर्नेवाला आत्मा है, यहभी एक आगम कहता है, अब इनमेंसें किसकों सच्चा और किसकों झूठा मानें परस्पर विरोधी होनेसें, सर्व तो कुछ सच्चे होही नही शक्ते हैं तथा युक्ति प्रमाणसें भी मरके परलोक जानेवाला आत्मा सिद्ध नहीं होता है ऐसा हे गौतम तेरे मनमें संशय है, अब इसका उत्तर कहता हूं कि, तूं वेद पदोंका अर्थ नही जानता है इत्यादि कहके श्रीगौतमजीके संशयकों दूर करा, ये सर्व अधिकार मूलावश्यक और श्रीविशेषावश्यकसें जान लेना, मैनें ग्रन्थके भारी और गहन होजानेके सबबसें यहां नहीं लिखा क्योंकि सर्व इग्यारह गणधरोंके संशय दूर करनेका कथनके चार हजार श्लोक है, पीछे जब गौतमजीका संशय दूर होगया, तब गौतमजी पांचसो अपनें विद्यार्थियोंके साथ दीक्षा लेके श्रीमहावीर भगवंत का प्रथम शिष्य हुवा ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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