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करी हूइ धर्मकी हानिरूप दूषणरूप आचर्यरूप वा चमत्कारप्रवृत्तिरूप अनेकतरहके दोपों को दूर हटाकर असदापत्तियोंका नाशकरनेवाले थे, श्रीवीरशासनका स्तंभभूत महान् समर्थपुरुषभये, तिसकारणसें सर्वत्र हिन्दुस्थानमे याने आर्यावर्त्तखंड में दरेक राजधानी दरेकशहर दरेकग्राम में सर्वत्र चरण स्थापना भई है, और मूर्तिभि कहां कहां है यह आचार्यश्री के स्वर्गारोहण अनंतरहि मणिधार श्रीजिनचंद्रसूरिजीभि अत्यंत उपगारी भये इसी सेंहि चरित्रनायक बडेदादासाहिबके नामसें श्रीजैनसंघ में प्रसिद्ध भया है, इसलिये सर्वगच्छका श्वेताम्बर जैनसंघ वगेरह अभेदबुद्धिसें मानते पूजते स्मरण करते कराते आयें हैं, और इससमय कितनेक जैनभाइ दृष्टिरागी के उपदेश भेदभाव रखतें हैं, भेदभाव करते हैं, कराते हैं, सो लाजिम नहीं है, किंतु उनोकी भूल है, सो सुधारलेनी चाहिये, यह उनों के आत्माका परात्माओं का भी कल्याण है, और यह कुतर्के कुशंकायें नहिंकरनी चाहिये, श्रीगुरुका अवर्णवादरूपनिंदा है, और भोले भद्रीक जीवसंदेहरूप भरमजाल मेगिरतें हैं, तथाहि — दादाजीका काउस्सग्गक्योंकरतेहो, करते हो तो दूसरे आचार्यों काहि करो, श्री गौतमस्वामिका और श्रीसुधर्यस्वामिकभी करो, वेभी परमोपकारी है, श्रीस्तंभनपार्श्वनाथजी काहि निरंतर परमोपकारी पणेंसें चैत्यवंदन करते हो तो श्री महावीर स्वामिकाभी आसत्रोपकारीपणेंसें करो, बोलवा बोलतें हैं शीरणी करते हैं उसमेसें थोडाक भाग चढायदे हो बाकी सब वैचदेते हो या खायजाते हो, यह तो सर्बाह गुरुद्रव्य है, तो श्रावक केसा खायसके, इत्यादि अनेकतरहकी कुयु - क्तियां दृष्टान्त देकर देव गुरु धर्मकी भक्तिभाव सें प्राणियोंका परिणाम हीयमान करते हैं, करवाते है, उन प्राणियों के जन्मान्तरमें कडवाफल होने
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