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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार। नाटक मण्डली मिली थी; यह बात मैंने उनसे कही । इस बातको सुनकर वे कुछ प्रसन्न तो अवश्य हुए थे । शायद वह नाटक मण्डली यहीं आई है ; और सुना है कि सरकारसे एक नाटक खेलनेकी उन्हें आज्ञा भी मिली है। धू०-हां ठीक है ;--आपने सच बात सुनी है । और, महाराज ! उसने मुझसे कहा है कि महाराज और महारानीको नाटक देखने अवश्य ले आइये । रा०—हां, हां, हम लोग बड़े आनन्दसे नाटक देखेंगे । और, सच पूछिये तो, यह बात सुनकर मुझे बहुत ही आनन्द हुआ कि उसका मन नाटककी ओर झुका हुआ है । सजनो ! अब तुम लोगोंसे मैं यही कहता हूँ कि, जहांतक हो, उसका मन उसी ओर लगाए रहो। नय-महाराज ! हम लोग भरसक कोई बात उठा न रक्खेंगे । (नय और विनय जाते हैं।) - रा०-प्रिये विषये ! थोड़ी देरके लिये अगर तुम भी यहांसे अन्दर चली जाओगी तो बहुत अच्छा होगा; क्योंकि हम लोग चाहते हैं कि जयन्त और कमलाको यहां अचानक भेट हो जाय । और इस लिये मैंने जयन्तको यहां बुलवाया भी है । अपने वृद्ध मन्त्रीने और मैंने यह बिचारा है कि वे और मैं दोनों परदेकी ओटमें खड़े खड़े कमला और जयन्तकी सब बातें सुन लें और फिर सोचें कि उसके पागल हो जानेका कारण कमलापर उसका प्रेम ही है या कुछ और है । • रानी-बहुत अच्छा; मैं जाती हूँ । सुनो, कमला ! तुम्हारी For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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