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जयन्त
[अंक ३
तीसरा अंक।
पहिला दृश्य स्थान-दीवानखाना।
राजा, रानी, धूर्जटि, कमला, नय और विनय प्रवेश करते हैं ।
रा.-क्या तुम लोग किसी तरह उसके इस भयंकर पागलपनका पता नहीं लगा सकते ?
नय-महाराज, उन्होंने यह तो स्वीकार कर लिया कि उनकी तबियत खराब है ; पर यह नहीं बताते कि तबियत खराब क्यों हुई ।
विन.-महाराज, उनका आप ही आप कहना तो दूर रहा; पर अगर हम लोग उन्हें उलटे सीधे प्रश्न करके सच्ची बातका पता लगाना चाहते हैं तो वे तुरन्त पागलका स्वांग ले कर हमारी बातोंको उड़ा देते हैं ।
रा०-खैर, उसने तुम्हारा स्वागत तो अच्छी तरह किया ? नय-बड़ी सभ्यताके साथ । विनय-पर, महाराज ! वह सभ्यता धूर्ततासे खाली न थी।
नय-वे आप तो कुछ भी नहीं पूजते थे; पर हमोर सवालका जवाब फौरन् दे देते थे।
रानी-क्या तुम लोगोंने उसे किसी खलमें लगानेकी चेष्ट्य की थी ?
नय-रानी साहब ? सुनिये । ऐसा हुआ कि रास्तेमें हमें एक
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