SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त [अंक २ विन०-आप बहुत ठीक कहते हैं ; और मेरी तो यह राय है कि स्वप्नकी बातोंपर विश्वास करनेसे बड़े बननेकी इच्छा करना और भी बुरा है ; क्योंकि वह स्वप्नका भी स्वप्न है। जयन्त-आपके न्यायशास्त्रसे जितने निकम्मे और भिखमंगे लोग हैं वे सब अच्छे और सच्चे हैं ; क्योंकि वे स्वप्नके स्वप्न नहीं देखा करते । और नाम कमानेवाले बड़े बड़े वीर योदा और राजा महाराजा सबके सब निकम्मे होते हैं : क्योंकि वे स्वप्नके स्वप्न देखा करते हैं । जो हो, मैं बहस नहीं करना चाहता । आपलोग मेरे साथ महलकी ओर चलेंगे ? नय०, विनय-आप आगे हों, हमलोग पीछे पीछे चलते हैं । जयन्त-नहीं, नहीं, नहीं, आजकल मेरे पीछे इतने नौकर पड़े हैं जिनसे मेरे नाकों दम आ गया है । पर, मित्रो, मैं तुमसे मित्रताके नाते पूछता हूं कि यहाँ किस लिये आए हो । ___ नय-महाराज, आपके दर्शनके लिये ; और कोई बात नहीं । जयन्त-इस कृपाका बदला देनेके लिये मेरे पास कुछ भी नहीं है; पर एक वस्तु है जिसे मेरे दममें दम रहते मुझसे कोई नहीं ले सकता । तुम्हारे इस प्रेमके लिये मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ । पर, अब पूछना यह है कि तुम लोग यहां यों ही चले आए ?-अपनी खुशीसे आए ? या किसीने किसी मतलबसे तुम्हें यहां भेजा है ? देखो, मेरे साथ कपट न करो । जो हो, सचसच कह दो। विन०-अब आपके सामने क्या कहें, महाराज ! जयन्त-क्यौं ? क्या हुआ ? जो इच्छा हो कह डालो; पर जो कहना हो सत्य और सार्थ कहो । तुमलोगोंका यहां आना हो इस For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy