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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । वह आपको कारागार जान पड़ता है तो आपके मतसे समस्त पृथ्वी कारागार ही होनी चाहिये । जयन्त-दां हां, समस्त पृथ्वी कारागार है । संसार रूपी कारागारमें अनेक छोटे छोटे कैदखाने, कालीकोठरियाँ, तहखाने, भुँआर इत्यादि बने हुए हैं । उनमें से बुरे से बुरा काराग्रह यह बलभद्रदेश है । नय - महाराज ! हमलोग इस बलभद्रदेशको ऐसा भयानक नहीं समझते । जयन्त - फिर तो तुम्हें कुछ भी न समझना चाहिये । क्योंकि इस संसार में कोई वस्तु अच्छी या बुरी निश्चित नहीं है । मन उसे अच्छी या बुरी बनाता है । इस हिसाब से बलभद्र मेरे लिये कारागार ही है । नय - आपकी महत्वाकांक्षा के कारण आपको यह ऐसा जान पड़ता है । आप बड़े बड़े बांधनू बांधते हों, और उनके लिये यदि यह बलभप्रदेश आपको बहुत छोटा नज़र आता हो तो कोई आश्चर्य नहीं । जयन्त— नहीं नहीं ; आजकल रातको मुझे बुरे स्वप्न दिखाई देते हैं । जो ये न दिखाई देते तो मैं बित्ताभर ज़मीनपर ही अपना गुज़ारा कर अपनेको सारे संसारका स्वामी समझ लेता । विन०- बहुत ठीक; आपके स्वप्न भी वैसे ही होते होंगे जैसे आपके विचार हैं । जबसे बड़े बनने की धुन आपपर सवार हुई तभी से आप स्वप्नोंसे हैरान होते होंगे । बड़प्पनकी इच्छा करना, मनमें उसीकी धुन लगी रहना और स्वप्नकी बातोंपर विश्वास करना, एकसा है I जयन्त - अजी, स्वप्न ही झूठ है तो उसमें देखी बातोंपर भला कौन विश्वास करेगा ? For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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