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दृश्य २ ]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
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भूरी हो जाती है । उनके चेहरेपर झुर्रियाँ पड़ जाती हैं । आँखों में पीला पीला लासेदार गोंद जम जाता हैं । उनकी बुद्धि मारी जाती है । उनके घुटने बहुत ही कमज़ोर हो जाते हैं । तात्पर्य, लेखकने बुड्डों का बहुत ठीक वर्णन किया है। इस वर्णन से तो मैं पूरी तौर से सहमत हूँ ; पर किसीके विषयमें ऐसा लिख मारना असभ्यता कहाती है । और आपके विषय में तो मैं यह सोचता हूं कि यदि केकड़ेकी भांति आप पीछे हट सकते तो बहुत शीघ्र मेरे जैसे नवयुवक बन जाते ।
धू० – ( एक ओर ) यह पागल तो है ही; पर बात बड़े ढंगसे करता है । ( प्रकाशमें ) महाराज, कहीं हवा खाने चलियेगा ? जयन्त — कबूमें चलूँगा ।
धू ०. -महाराज, कबूमें हवा नहीं होती । ( एक ओर ) किसी किसी समय यह कैसे मार्मिक उत्तर देता है । पागलपनमें कभी कभी ऐसी बातें सूझती हैं जो होश लाख सिर पटकनेपर भी नहीं सूझतीं । खैर, अब इसे यहीं छोड़ जाता हूँ; और कमलाको इससे मिलानेका कोई उपाय सोचता हूँ । ( प्रकाश ) अन्नदाताजी ! मैं अब आज्ञा लेता हूँ ।
जयन्त - प्राण छोड़कर चाहे जो लीजिये ; जाइये, जाइये । धू० जाता महाराज । परमेश्वर आपकी रक्षा करे !
"
जयन्त- - अब ये मूर्ख माथा चाटने आ गए ।
( नय और विनय प्रवेश करते हैं । )
धू० - क्या तुमलोग महाराज जयन्तकी खोजमें हो ? जाओ, वे वहीं हैं ।
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