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५२ जयन्त
[ अंक २ कोई भला आदमी अगर नीच स्त्रीका चुम्बन करे तो......पर हां, आपके एक कन्या भी तो है ?
धू०-हां, है, महाराज ।
जयन्त-तो उसे बाहर निकालकर सूर्य-किरण न दिखलाइये । अन्दर परदेमें ही रक्खा करिये । नहीं तो उसके शरीरमें भी कीड़े पड़ जायँगे । ऐसा होना कुछ बुरा तो नहीं है; पर न जाने उसके कैसे विचार हैं ! इस लिये कहता हूं कि, भाई, देखो, उसे सम्भाले रहो ।
धू०-( एक ओर ) वाह रे मैं ! और वाह री मेरी बुद्धि ! धूर्जटि ! अब क्या सोचते हो ? अब तो तुम्हारे किये हुए भविष्य - की सचाई इसीकी बातोंसे सिद्ध हो गई । अभीतक यह उसीके ध्यानमें मगन है । पर, मुझे देखते ही न पहिचान सका ;-कहता है कि तुम मछुआ हो । यह बिलकुल बहक गया है । पर इस बिचारेको ही मैं क्यों दोष दूँ ? मेरी भी तो इस अवस्थामें कामज्वरसे यही दशा हुई थी । अस्तु, फिर एक बार उससे कुछ बोलना चाहिये। (प्रकाशमें ) महाराज, आप क्या पढ़ रहे हैं ?
जयन्त-शब्द, शब्द, शब्द ! धू -उनमें क्या विषय है ? जयन्त-किनमें ?
धू०-महाराज, मैं यह पूछता हूं कि जो आप पढ़ रहे हैं उसमें क्या लिखा है ? . . ... जयन्त-इसमें तो निन्दा ही निन्दा भरी है । जिस दुष्ट निन्दकने यह पुस्तक लिखी है वह यह कहता है कि बूढ़ोंकी दाढ़ी
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