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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACH ३५ दृश्य ५] बलभद्रदेशका राजकुमार। और मैं भी अपनी इच्छानुसार कहीं तोभी जाकर अपना काम देखता हूँ। क्योंकि काम और इच्छा सब किसीको होती है । अच्छा, आज्ञा दो, अब मैं जाऊँगा। विशा०-महाराज, ये तो बेसिरपैरकी बातें हुई । जयन्त-मुझे बहुत दुःख है कि मेरी बातोंसे तुम्हारा अपमान हुआ। अच्छा, मैं हृदयसे क्षमा-प्रार्थना करता हूँ। विशा०-इसमें अपमानकी क्या बात है, महाराज ? जयन्तक्यों नहीं ? अवश्य है । सचमुच, विशालाक्ष, मैंने तुम्हारा भारी अपमान किया । अस्तु, इस भूतके विषयमें मैं तुमलोगोंसे इतनाही कहे देता हूँ कि, यह भूत ईमान्दार है । और अगर तुमलोग यह जानना चाहते हो कि मुझसे उससे क्या क्या बातें हुई तो इसकी तुमलोग जी चाहे जैसी कल्पना करलो । मेरे विद्वान, वीर और सच्चे मित्रो ! तुमलोगोंसे मेरी एक प्रार्थना है । विशा०-वह कौनसी, महाराज ? कहिये, आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। जयन्त-आज रातको जो कुछ तुमने देखा है उसे किसीपर प्रकट न करो। विशा०, वीर०-नहीं, महाराज, हमलोग कभी नहीं प्रकट करेंगे। जयन्त-नहीं, इस तरह काम न चलेगा; सौगन्द खाओ। विशा.-विश्वास रखिये, मैं किसीसे नहीं कहूँगा। बीर०-मैं भी नहीं कहूँगा, महाराज । जयन्त-मेरी तलवारकी सौगन्द ? वीर०-महाराज, हमलोग अभी सौगन्द खा चुके हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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