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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ३ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । २१ ऐसी ही होनी चाहिये जिसमें प्रजाकी सम्मति हो । और यदि वह कहे कि " कमले, मैं तुमपर प्रेम करता हूँ, " तो ऐसे प्रेमपर उतना ही विश्वास करना जितना प्रेम उसके किसी कार्यविशेषसे प्रजापर प्रकट हो । नहीं तो उसकी मीठी मीठी बातोंमें आकर अपने पिताके निष्कलंक कुलको कलंकित करोगी और अपने सतीधर्ममें धब्बा लगाओगी। इसलिये, मेरी प्यारी बहिन, वासनाधीन होकर अपने मनको इधर उघर न बहकने देना । तरुणी और रूपवती स्त्रियोंको बहुत बचकर चलना चाहिये । मित हास्य, मित भाषण, मित मेलजोल - अर्थात् उनका प्रत्येक व्यवहार मित ही होना चाहिये । महा पतिव्रता सीता जैसी साध्वी स्त्री भी जनापवादसे न बचने पाई । किसी किसी समय तो खिलनेसे पहिले ही कलीमें कीड़े लग जाते हैं, वैसे ही इस तारुण्यकुसुमको न जाने कौन कब दूषित करेगा ! इसीलिये कहता हूँ कि सावधान रहो । डरकर चलोगी तो बच जाओगी। चाह और कुछ हो या नहीं, पर तरुणावस्था बड़ी हीं दगाबाज होती है । कमला – भाई, मैं तो तुम्हारे इस सदुपदेशको कभी न भूलूँगी; पर तुम ही कहीं ऐसा न करना कि मुझे ब्रह्मज्ञानकी लम्बी चौड़ी बातें सुनाकर स्वयं मनमाना काम करो ! चन्द्र० - नहीं नहीं, मेरे विषयमें तुम बिल्कुल चिन्ता न करो । ओफ़ ! बहुत विलम्ब हो गया ! अब मैं बिदा होता हूँ । परन्तु पिताज इधर ही आरहे हैं । ( धूर्जटिका प्रवेश ) अच्छा हुआ, पिताजी आगये; क्योंकि दुबारा अशीर्वाद से आनन्द भी दूना मिलेगा। और जाते समय पिताका दर्शन होना भी एक शुभ सूचना है । For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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